Sunday, May 18, 2008

चन्द पंक्तियाँ, जो राहत देती हैं....

अपने कई मित्र आह़त होते हैं...खुश होते हैं..बदलते दौर से निराश भी...होना भी चाहिए...मुझे ऐसे में कुछ पंक्तियाँ बेहद राहत देती हैं...मेरे कई अपनों को भी राहत देंगी.... तोः लीजिये पेश-ए-नज़र है....

किरण की इकाई परतिमिर की दहाइयांशगुनो पर फैली हैं काली परछाइयांशक्ति कहीं गिरवी है भक्ति कहीं गिरवी है सौदा ईमानो का श्रद्धा सम्मानों का शंख भी शशंकित हैं सहमी हैं पुरवाइयां.....तोः इस दौर में जब एक चेहरे के भीतर ना जाने कितने चेहरे हैं...जब अपने आसपास शंका का माहौल बना है...कौन बुरा और कौन अच्छा है...पहचानना बेहद मुश्किल है तोः ऐसे में येः पंक्तियाँ मेरे ख़याल से बड़ी मौजूं लगती हैं....है कि नई......और हाँ येः मेरी नही हैं पता नही किस भलेमानुष की हैं...बाकी व्यस्त रहिये मस्त रहिये.....

हृदयेंद्र

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फुहार

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प्यार करता हूँ सबसे, आपकी कोई भी मदद बिना नफा नुक्सान सोचे कर दूंगा, अपने गुस्से से बहुत डर लगता है, हमेशा कोशिश रहती है की बस ''गुस्सा'' न आये मुझे, लोग मुझे बहुत अच्छे दोस्त, शरीफ इंसान और एक इमानदार दुश्मन के तौर पर याद रखते हैं, एक बार दुश्मनी कीजिये, देखिये कितनी इमानदारी से ये काम भी करता हूँ,