Monday, March 9, 2009

होलिया में उडे रे गुलाल

रंगों का त्यौहार
कहीं हजार, कहीं दिल के पार
कहीं महक, कहीं थोड़ा सा प्यार
थोडी जिन्दादिली, थोडी मशक्कत
थोडी जिद , थोडी मनुहार
कुछ आर पार
पता नही क्या
दीखता शीशे सा साफ़
न कोई इश्तिहार
कुछ रंग कुछ मौसम
कुछ दिल कुछ जबान
कुछ मोहब्बत कुछ अफसाना
कुछ कुछ हर कहीं
दिल में, तन में, मन में, हर कहीं
बहार
बौछार
प्यार
दुलार
और फ़िर
हर कहीं झूमती
बस एक अदद बयार
यही तो है
रंगों का त्यौहार...
उमंगो का त्यौहार
अपनी और उसकी कुछ अनकही
एक बार फ़िर से न कहने का त्यौहार
फलक फैलाकर
अपने सीने में समटने का त्यौहार
यही होगा तुम्हारे और मेरे जज्बातों का
कुछ अनकहा सा शायद '' त्यौहार''

'' हृदयेंद्र''

फुहार

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प्यार करता हूँ सबसे, आपकी कोई भी मदद बिना नफा नुक्सान सोचे कर दूंगा, अपने गुस्से से बहुत डर लगता है, हमेशा कोशिश रहती है की बस ''गुस्सा'' न आये मुझे, लोग मुझे बहुत अच्छे दोस्त, शरीफ इंसान और एक इमानदार दुश्मन के तौर पर याद रखते हैं, एक बार दुश्मनी कीजिये, देखिये कितनी इमानदारी से ये काम भी करता हूँ,