Monday, May 12, 2008

अपनी संवेदना के साथ....

अभी हमारे पड़ोसी बर्मा में नरगिस आया....नाम बेहद खूबसूरत पर रूप बेहद क्रूर...एक साथ करीब २४ हजार लोगों की जान ले ली..४५ हजार लापता...विपदा, संकट,त्रासदी..क्या कहें इसे...एक भयानक सा कुछ है...कुछ कुरूप सा...जिसे कोई दुबारा होते नही देखना चाहेगा....पहली ही बार कौन देखना चाहता था..पता नही कौन सा आवेग आता है प्रकृति को और उसका गुस्सा कुछ मासूमों पर निकल जाता है...क्या बिगाडा था दोलमा ने किसी का, सान्ग्ग्कू ने भी किसी का क्या बिगाडा था....बस उसने तोः अभी दुनिया देखनी ही शुरू की थी और उस नन्हे फूल को एक भयानक आंधी पता नही कहाँ ले गई अपने साथ..बिना कुछ सोचे की अभी उसे माँ के पास भी जाना है...आख़िर प्रकृति इतनी गैर जिम्मेदार तोः नही हो सकती...लेकिन बहुत सारे किंतु-परन्तु के साथ अब हिस्से में आया है रोना....सबके...हमारे भी...सिर्फ़ अपनी संवेदनाओं के साथ अपने पडोसियों के साहस को सलाम करते हुए इतना ही की...
तुम्हे पता नही था की त्रासदी यूं आएगी
चुपचाप
तभी अपने घर के आँगन में तुम लेटे थे बेहद आश्वस्त
तुम खुश थे
अपने परिवार के साथ
अब तुम्हारे पास
कहने के लिए बहुत कुछ नही बचा
न घर, न परिवार
न किलकारियाँ
लेकिन
तुम फिर से हंसोगे वायदा है मेरा
क्यूंकि तुम टूटे हो, अभी हारे नही
तुम्हे हँसना होगा....उस माँ के लिए जो अकेली है
उस बेटे के लिए जिसका कोई नही है
उस बहन के लिए जिसके सपनो को सिर्फ़ तुम सच कर सकते हो...
मैं कुछ नही कहूँगा
न संवेदना दूंगा
न दिलासा
क्यूंकि
तुम्हारी पीड़ा का इलाज नही है मेरे पास
मेरे पास हैं कुछ बेहद छोटे से शब्द
तुम्हारे प्रति सम्मान के, आभार के और प्यार के
उम्मीद है तुम्हारे नए जीवन के लिए ये काम आयेंगे...
तुम्हारा
''मैं''

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फुहार

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प्यार करता हूँ सबसे, आपकी कोई भी मदद बिना नफा नुक्सान सोचे कर दूंगा, अपने गुस्से से बहुत डर लगता है, हमेशा कोशिश रहती है की बस ''गुस्सा'' न आये मुझे, लोग मुझे बहुत अच्छे दोस्त, शरीफ इंसान और एक इमानदार दुश्मन के तौर पर याद रखते हैं, एक बार दुश्मनी कीजिये, देखिये कितनी इमानदारी से ये काम भी करता हूँ,