Saturday, May 10, 2008

वाह भाई वाह!

ऑफिस में बैठकर बीबीसी हिन्दी पढ़ रहा था जैसा की रोज करता हूँ अभी भी थोडी बहुत आस्था बीबीसी में बरकरार है...पढ़ते-पढ़ते अपने ग्रेट खली के बारे में भी बीबीसी ने कुछ लिखा तोः सोचा पढ़ा जाए बीबीसी ऐसा क्या लिखता है खली के बारे में जो हमें ना मालूम हो...अब तोः खली की पूरी दिनचर्या मुहजबानी याद हो गई है...भैय्या क्या खाते है, क्या पीते हैं, भाभी को किस सिनेमा हॉल में फ़िल्म दिखाने ले जाते हैं..आदि आदि...खैर...
तोः मजेदार बात ये है की बीबीसी के शांतनु गुहा रे ने लिखा की खली भैय्या पूरी तरह से शाकाहारी हैं....लेकिन येः क्या कहानी में ट्विस्ट आ गया...बीबीसी पढ़कर जब अखबारों की फाइल खोली तोः नज़र दैनिक भास्कर पर चली गई....ये क्या ...भास्कर ने दिनांक १० मई के पहले पेज के दिल्ली संस्करण में लिखा की खली एक दिन में खाता है आठ चिकन....अब जाहिर है मुझ गरीब पत्रकार के सामने भी अजब संकट आ गया....सच्चा मानने का....किसको सच माना जाए...एक तरफ़ बीबीसी....पूरी दुनिया में सच दिखाने,बोलने और लिखने का दावा करता है...दूसरी तरफ़ अपना देसी भास्कर....भारत का सबसे तेज बढता अखबार....यकीन किस पर किया जाए....इस धर्मसंकट से अभी तक जूझ रहा हूँ...क्या किसी के पास इस सवाल का सही जवाब है की असल में खली शाकाहारी है या मांसाहारी....
दरअसल मीडिया की विश्वसनीयता के संकट की कई सारी कहानियों में से येः एक कहानी भर है....भारत के मीडिया जगत की..खासकर हिन्दी मीडिया की एक और सच्चाई हैं ये दो अलग-अलग खबरें....काश की लिखने वाले ने एक बार हम गरीबों के मासूम चेहरों की तरफ़ देखा होता तोः शायद ऐसा न लिखा जाता....क्या पढ़ने वालों के दर्द को कभी लिखने वाले समझेंगे? इतना भर जानना चाहता हूँ....
हृदयेंद्र

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फुहार

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प्यार करता हूँ सबसे, आपकी कोई भी मदद बिना नफा नुक्सान सोचे कर दूंगा, अपने गुस्से से बहुत डर लगता है, हमेशा कोशिश रहती है की बस ''गुस्सा'' न आये मुझे, लोग मुझे बहुत अच्छे दोस्त, शरीफ इंसान और एक इमानदार दुश्मन के तौर पर याद रखते हैं, एक बार दुश्मनी कीजिये, देखिये कितनी इमानदारी से ये काम भी करता हूँ,