Saturday, June 7, 2008

दिलों को जीतने का फन यानी चेतन...

जल्द ही एक ख़बर छपी थी अख़बारों में...राहत देने लायक...अरसे से सुस्त पड़े भारत के प्रकाशन उद्योग को एक शख्स ने हिम्मत दी है...नाम है...चेतन भगत...ख़बर भारत के प्रकाशन उद्योग की पतली होती हालत पर थी...ख़ुद को दुनिया के सबसे बडे ज्ञानियों में शुमार करने वाले भारत के साहित्यकारों की कलम में न इतनी ताकत बची है और न कूवत की उनको देश के एक लाख पाठक भी पद सकें...आज के जमाने में जब हर कोई दुनिया का सबसे ज्ञानवान साहित्यकार और कलमकार होने के दिखावे में जुटा है तोः येः आंकडा वाकई कहानी की असल सच्चाई बयान करता है...जाहिर है हिन्दी साथ ही अंग्रेजी और दूसरी भारतीय भाषा के किसी फुल टाइम साहित्यकार की इतनी कूवत नही है की उनकी कहानी या रचना को पचास हजार लोग भी पढ़ सकें...जाहिर है इस बार भी सच्चाई अपने सबसे तल्ख़ रूप में सामने है...क्या अजब दुर्भाग्य है की दुनिया पलटने, क्रांति करवा देने, सर्वहारा की लड़ाई के अकेले प्रतिनिधि होने का दावा करने और प्रगतिशीलता के सबसे बड़े लम्बरदारों को आम जन और आम पाठक ने सिरे से नकार दिया है...भले कुछ लोग या एक वर्ग को ये खोखले साहित्यकार अपनी लफ्फाजियों से बरगला लें लेकिन पाठक को भ्रमित कर पाना इनके लिए आसन नही रहा...बड़ा हास्यास्पद लगता है जब दुनिया में क्रांति कर देने वाले और दूसरो को आदर्शों का पाठ सिखाने वाले साहित्यकार अपनी रचना की रोयाल्टी के लिए प्रकाशकों के चक्कर लगाते लगाते दुनिया से रुखसत हो लिए...जाहिर है एक अदद धाकड़ साहित्यकार की कमी का नतीजा था की साहित्यकार प्रकाशकों के चम्पू से ज्यादा कुछ नही रहे...खासकर अपने हिन्दी वाले तोः और भी बेचारी हालत में हैं...हंस, कथादेश और इस जैसी तमाम पत्रिकाएं एक अदद विज्ञापन को तरसती हैं...विज्ञापन न मिलने की दशा में अपने दिमागी साहित्यकार येः तर्क गढ़ते हैं की बाजार के दबाव में आए बिना हम पत्रिका निकलना चाहते थे इसलिए हम विज्ञापनों से अपनी पत्रिका को दूर रखते हैं...दरअसल इसके पीछे का मनोविज्ञान सामने लाना चाहता हूँ...अगर आपकी स्वीकार्यता है तोः बाजार भी आपको स्वीकार करता है...(बाजार कोई हव्वा या दूसरे ग्रह से आई चीज नही है)...आम पाठक द्वारा अस्वीकार किए जाने और बुरी तरह पिटने के बावजूद भी येः अखबार, पत्रिकाएं और इनके तंगदिल करता धरता इस मुगालते में ही जीना पसंद करते हैं की हम सबसे बेहतर हैं...चाहे पाठक हमें पसंद करे या न करे लेकिन हम तोः अपना अजेंडा लिखने में चलाते रहेंगे...
खैर....येः दास्ताँ बहुत लम्बी है....लेकिन...साहित्य जगत में वाकई अगर किसी इंसान ने हलचल मचाई है तोः वोः है चेतन भगत...एक गैर साहित्यकार का इस तरह साहित्य की दुनिया में आना और भारत का बेहतरीन लेखक बन जाना बहुत कुछ कह जाता है...हाल येः है की चेतन की हालिया प्रकाशित किताब Three mistakes of my life… की दो लाख प्रतिया बाजार में आने से पहले ही बुक हो चुकी हैं ऐसा नही है की अंधे के हाथ कोई बटर लग गई हो..उनकी पहली किताब five point some one… भी ६ लाख का आंकडा बिक्री में पार कर चुकी है और इसकी मांग लगातार जारी है...चेतन की दूसरी किताब one night at call centre… का भी लगभग यही रेकार्ड रहा...उनको न अपनी रोयाल्टी के लिए किसी प्रकाशक के सामने रिरियाना पड़ता है और न ही प्रकाशक उन्हे तंग करने का साहस करता है...ऐसा नही है की चेतन कोई क्रांतिकारी लेखक हैं या विद्वान् बल्कि इस लेखक ने अपनी किताब पढने से पहले पाठक को बेवकूफ समझने की भूल नही की और न ही अपनी सनक को सब पर थोपने की कोशिश...सीधी, इमानदार और नौजवानों को समझ आने वाली भाषा और लेखन का नतीजा क्या हो सकता है उसकी कहानी आंकडे ख़ुद बयान करते हैं....वाकई हिन्दी के लेखकों के लिए ये सपना ही है और रहेगा...इन तीनो किताबों की खासियतें अगर देखें तोः इनकी भाषा भी है...बेहद सरल अंग्रेजी में लिखी येः किताबें खुशी, रोमांच, गुस्सा और भावनाओं को बेहद सलीके से छूती हैं...इसका अंदाजा मुझे उस वक्त भी मिला जब मैं देश के विभिन्न हिस्सों में घूमा और वहाँ की तरक्की पसंद नौजवान पीढ़ी से मिला...सबको चेतन का लिखा खूब पसंद आया...इस सबके बीच जिस सवाल का जवाब मुझे चाहिए था वह भी मिला जवाब था की जब तक पाठक की पसंद को जाने बिना लेखन किया जायेगा उसका हश्र अपने हिन्दी के लेखकों जैसा ही होगा....आज शायद ही हिन्दी का कोई लेखक अपनी लेखनी के दम पर १०००० पाठकों को अपनी किताबें पढ़ा सकता हो...जनसत्ता का बुरी तरह फ्लॉप होना, कुछ फटीचर किस्म के साहित्यकारों तक ही हिन्दी की साहित्यिक पत्रिकाओं का सिमट जाना...हिन्दी और विचारों को ख़ुद की संपत्ति मानने वाले साहित्यकारों के मुंह पर करारा तमाचा है...आज भी देश के सबसे बडे मध्य वर्ग और सबसे बडे तबके युवा वर्ग के बीच गैर साहित्यकारों की कृतियों का बेस्ट सेलर होना अगर कुछ कहता है तोः हिन्दी के झंडाबर्दारों की असफलता की कहानी...रोबिन शर्मा की the monk who sold his ferrari…का घर-घर में लोकप्रिय होना भी इसी कड़ी का एक हिस्सा भर है...मैं अक्सर जेएनयू और india habitat centre… में गावों और शहरों से आने वाले नौजवान साथियों को देखता हूँ जो ख़ुद को बुद्धिजीवी साबित करने के लिए बेसिर पैर के विचारों से लैस होते हैं..उनकी प्रासंगिकता को जाने बिना घंटों व्यर्थ के वाद-विवाद में उलझने से भी उन्हें गुरेज नही है...बाजार ने समाज, साहित्य, विचार और लोगों की प्राथमिकताओं को बदला है इससे भी इन गरीब बुद्धिजीवियों को कोई लेना देना नही है अफ़सोस यही कथित बुद्धिजीवी बाद में लेखक का जामा पहनते हैं और लेखन की दुनिया में प्रकाशकों की बहुत सी स्याही और कागज़ के ढेर बरबाद करके हिन्दी और हिन्दी साहित्य का जनाजा निकालते हैं...आज हिन्दी के किसी साहित्यकार की इतनी हैसियत नही है की वो इन नौसिखिये लेखकों का मुकाबला तक कर सके... जाहिर है विचारों के प्रपंच से कुछ लोगों को ही बेवकूफ बनाया जा सकता है....ज्यादातर को नही...जाहिर है चेतन भगत और इन जैसे लेखक उम्मीद बंधाते हैं और एहसास भी की नए भारत और नए दौर को समझने का दम अंग्रेजीदां कही जाने वाली पीढ़ी के गुमनाम से नौजवानों में है और येः अपने लिखे से अच्छे अच्छे साहित्यिक माफियाओं को उनकी हैसियत का एहसास कराने में सक्षम हैं...तोः इन युवा तुर्को और इनकी काबिलियत को सलाम किया जाए और हिन्दी के कथित साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों को थोडी सी शर्म भेजी जाए बुरी तरह से इन नौसिखिये कलमकारों के हाथों पिटने के लिए....
हृदयेंद्र

2 comments:

Anonymous said...

aapki is baat se poori tarah sahmat hoon. Hindi mein Chandrakanta aur Premchand ke baad aisa koi lekhak ya kitab nahi aai jo ki padhne walon mein halchal macha de. Aur jab logon ne 100 saal pahle Chandrakanta ke liye Hindi seekhi thi to aaj to Hindi seekhna aur bhi aasan ho gaya hai. Lekin durbhagya to yahi hai ki ye tathakthit budhhijivi jamat hindi sahitya par kabza jamaye baithi hai .

Anonymous said...

aur koi aashrya nahi ki Hindi mein sabse jyada bikne wala lekhak Ved Prakash Sharma hai

फुहार

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प्यार करता हूँ सबसे, आपकी कोई भी मदद बिना नफा नुक्सान सोचे कर दूंगा, अपने गुस्से से बहुत डर लगता है, हमेशा कोशिश रहती है की बस ''गुस्सा'' न आये मुझे, लोग मुझे बहुत अच्छे दोस्त, शरीफ इंसान और एक इमानदार दुश्मन के तौर पर याद रखते हैं, एक बार दुश्मनी कीजिये, देखिये कितनी इमानदारी से ये काम भी करता हूँ,