कभी पत्रकार बनने का सोचा भी नहीं था फिर भी एक ही पत्रकार को जनता था आलोक तोमर, दूसरों को बिन मांगी सलाह देता था की आलोक तोमर को कभी पढ़ा है, पता नहीं कितनो को उत्सुकता से अलोक सर के लिखे लेख पढ़ा दिए, पत्रकारिता में प्रभाष जी राम थे तो आलोक सर हनुमान थे हमारे लिए, भगवान् का दर्जा दोनों का है, इश्वर ने भी सुनी और एक दिन मेरे मसीहा से मुलाकात भी करा दी, दिल के तार कुछ यूँ जुड़े की बस उनका ही होकर रह गया, बहुतों को डर लगता हैं उनसे, अपन कभी डरे ही नहीं, बल्कि हर बार अधिकार से कही, इतना बड़ा पत्रकार, उतना बड़ा पत्रकार जैसी चीज कभी रही नहीं हमारे बीच, ये जानते हुए भी की मेरी उम्र के बराबर उनका अनुभव होगा, बस एक स्नेह की डोर जो हमेशा मजबूत और मजबूत होती चली गयी, आलोक तोमर आलोक सर कब हो गए पता नहीं चला, हमेशा किसी जैसा होने के खिलाफ रहा, पर पता नहीं क्यूँ उन जैसा हमेशा होना चाहा १९ जुलाई को खबर सुनी आलोक सर के बीमार होने की ॥ आलोक तोमर को गले का कैंसर नामसे खबर चिपकी हुयी है एक साईट पर , प्रभाष जी के जाने का झटका अभी तक दिल झेल नहीं पाया था की ये बुरी खबर झेलनी पड़ रही है, मुझ जैसे तमाम लोग भारत और उसके कई कोनो में मौजूद हैं, जिनके लिए एक संबल, लड़ाकू पत्रकारिता का पितामह और एक मार्ग दर्शक हैं आलोक तोमर... हम जैसों के लिए मसीहा हैं वे अब जिम्मेदारी हमारी है की इस संकट की घडी में आलोक सर के साथ पूरी शिद्दत के साथ खड़ा हुआ जाये, इस वट वृक्ष को हर हाल में बचाना होगा हमें, अपने संबल से, अपने हौसले से और अपनी दुआओं से, इश्वर से दुआ कीजिये की पत्रकारिता का ये यौद्धा फिर से स्वस्थ होकर हमारा मार्गदर्शन करे... हमें रास्ता दिखाए, लड़ने, भिड़ने का हौसला दे फिर से... ढेर सारी दुवायें कीजिये और आलोक सर को हौसला दीजिये जिस तरह से हो सकती है उनकी मदद कीजिये... उनसे aloktomar@hotmail.com पर संपर्क कर उन्हें अपनी शुभ कामनाएं और प्यार दे सकते हैं.. हृदयेंद्र
Sunday, July 18, 2010
खतरे में हमारा मसीहा...
कभी पत्रकार बनने का सोचा भी नहीं था फिर भी एक ही पत्रकार को जनता था आलोक तोमर, दूसरों को बिन मांगी सलाह देता था की आलोक तोमर को कभी पढ़ा है, पता नहीं कितनो को उत्सुकता से अलोक सर के लिखे लेख पढ़ा दिए, पत्रकारिता में प्रभाष जी राम थे तो आलोक सर हनुमान थे हमारे लिए, भगवान् का दर्जा दोनों का है, इश्वर ने भी सुनी और एक दिन मेरे मसीहा से मुलाकात भी करा दी, दिल के तार कुछ यूँ जुड़े की बस उनका ही होकर रह गया, बहुतों को डर लगता हैं उनसे, अपन कभी डरे ही नहीं, बल्कि हर बार अधिकार से कही, इतना बड़ा पत्रकार, उतना बड़ा पत्रकार जैसी चीज कभी रही नहीं हमारे बीच, ये जानते हुए भी की मेरी उम्र के बराबर उनका अनुभव होगा, बस एक स्नेह की डोर जो हमेशा मजबूत और मजबूत होती चली गयी, आलोक तोमर आलोक सर कब हो गए पता नहीं चला, हमेशा किसी जैसा होने के खिलाफ रहा, पर पता नहीं क्यूँ उन जैसा हमेशा होना चाहा १९ जुलाई को खबर सुनी आलोक सर के बीमार होने की ॥ आलोक तोमर को गले का कैंसर नामसे खबर चिपकी हुयी है एक साईट पर , प्रभाष जी के जाने का झटका अभी तक दिल झेल नहीं पाया था की ये बुरी खबर झेलनी पड़ रही है, मुझ जैसे तमाम लोग भारत और उसके कई कोनो में मौजूद हैं, जिनके लिए एक संबल, लड़ाकू पत्रकारिता का पितामह और एक मार्ग दर्शक हैं आलोक तोमर... हम जैसों के लिए मसीहा हैं वे अब जिम्मेदारी हमारी है की इस संकट की घडी में आलोक सर के साथ पूरी शिद्दत के साथ खड़ा हुआ जाये, इस वट वृक्ष को हर हाल में बचाना होगा हमें, अपने संबल से, अपने हौसले से और अपनी दुआओं से, इश्वर से दुआ कीजिये की पत्रकारिता का ये यौद्धा फिर से स्वस्थ होकर हमारा मार्गदर्शन करे... हमें रास्ता दिखाए, लड़ने, भिड़ने का हौसला दे फिर से... ढेर सारी दुवायें कीजिये और आलोक सर को हौसला दीजिये जिस तरह से हो सकती है उनकी मदद कीजिये... उनसे aloktomar@hotmail.com पर संपर्क कर उन्हें अपनी शुभ कामनाएं और प्यार दे सकते हैं.. हृदयेंद्र
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फुहार
- hridayendra
- प्यार करता हूँ सबसे, आपकी कोई भी मदद बिना नफा नुक्सान सोचे कर दूंगा, अपने गुस्से से बहुत डर लगता है, हमेशा कोशिश रहती है की बस ''गुस्सा'' न आये मुझे, लोग मुझे बहुत अच्छे दोस्त, शरीफ इंसान और एक इमानदार दुश्मन के तौर पर याद रखते हैं, एक बार दुश्मनी कीजिये, देखिये कितनी इमानदारी से ये काम भी करता हूँ,
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