Thursday, April 23, 2009

कहानी सुबिन दास की...

किसी तंगदिल ने पता नही कब मौका तलाशा और मेरी मोटर साइकिल की गद्दी पर अपनी सारी भड़ास निकाल दी, यानी बड़े सलीके से उसे ब्लेड से चीर दिया, जीवन में ख़ुद से जुड़ी सभी चीजों से बेपनाह प्यार करने के चलते अपनी गाड़ी से भी बेहद प्यार करता हूँ, फटी हुयी गद्दी देखकर दुःख तोः बहुत हुआ पर आप कई बार कुछ नही कर सकते सिवाय मूक दर्शक बनकर चीजों को देखने के, इस प्रवृत्ति को बहुत पहले ही विकसित कर लिया था ताकि जीवन में कम से कम तनाव में रह सकूँ, खैर, अपनी फटी हुयी गद्दी लेकर कई कामचोर किस्म के मोचियों के पास गया लेकिन सबने अपने हाथ खड़े कर दिए, अभी दिमाग में जुगत लगा ही रहा था की सालों पहले नॉएडा में १२-२२ चौराहे पर बेहद बुजुर्ग लेकिन सलीकेदार तरीके से चमड़ेके सामानों की दशा सुधारने वाले बुजुर्ग की याद आ गई , ऑफिस जाते समय रास्ते में नॉएडा के बेहद मशहूर १२-२२ चौराहे से सेक्टर ५६ की तरफ़ मुड़ने वाले कोने पर जाडा, गर्मी और बरसात में कुछ फटे पुराने कपडों में खुले आसमान के नीचे सुबीनदास का ठीहा या यूँ कहें ठिकाना है, बरसों बाद गाड़ी उस ठिकाने पर इस भरोसे के साथ ले गया की सुबीन दा जरूर मेरी दिक्कत का हल करेंगे, पेशे से पत्रकार हूँ पर जिंदगी में बहुत कुछ आज भी नही सीख पाया, मानवता, इंसानियत और दूसरी चीजों की बेहद कम समझ है लेकिन हर बार कुछ न कुछ ऐसा होता है जो इन चीजों पर गंभीरता से सोचने पर मजबूर करता है....खैर
आज भी गाड़ी लेकर सुबीन दा के पास पहुँचा, पहले से काफ़ी बुजुर्ग हो चुके थे, दुआ सलाम के बाद उस बुजुर्ग ने न केवल मेरी दिक्कत का हल निकाला बल्कि मुझे अपने बेहद पुराने बैग से एक अदद मिठाई का टुकडा दिया , इस तंगदिल शहर में अरसे बाद किसी अजनबी से मिलने पर एक बेहद गरीब आदमी जिसके रहने का ठिकाना भी नही है लेकिन बेहद गुरबत में भी अपने संस्कारों के प्रति इतना संवेदनशील होना और एक खाए- अघाए आदमी को भी मेहमान समझना और मिठाई का टुकडा बेहद प्यार से देना भीतर तक छु गया, पैसे और ज्यादा पैसे कमाने के चक्कर में सिर्फ़ और सिर्फ़ ख़ुद को खुदा माननेवाले इस शहर में अरसे बाद सुबीन दा ने एक सबक दिया , जाती व्यवस्था में सबसे ऊँची पायदान पर होने का अहम् अक्सर जोर मार जाता है लेकिन कभी जिसे हमारे यहाँ पैरों के नीचे रखा जाता था आज उसी इंसान के पाँव पड़ने का मन कर रहा था, कुछ पेशे की मजबूरी और कुछ जमाने की , सुबीन दा के पैर तो नही छु सका लेकिन गद्दी फटने का गम ना जाने कहाँ गायब हो गया था और साल भर बाद एक बेहद साधारण इंसान ने मुझे एक कभी न भूलनेवाला सबक दे दिया था, यकीनन जिंदगी कुछ यूँ ही सबक सिखा जाती है ...खैर उन एक घंटों में सुबीन दा ने करीब तीन कहानियाँ सुनाई और अपने मेहनाते को लेने से साफ़ इनकार कर दिया, बदले में उन्हें अपनी जेब में रखे सारे पैसे दे देना चाहता था लेकिन मालोम था की इन पैसों से उनकी दिक्कतें कभी कम नही होंगी बतौर एक पत्रकार ये वादा जरूर किया की किसी दिक्कत पर सबसे पहले खड़े होनेवालों मैं मैं होऊंगा ....यकीनन मुझे होना ही होगा उनके लिए और अपनी इंसानियत के लिए ....किताब लिखने का इरादा है उसमे बहुत कुछ लिख भी चुका हूँ कभी सुबीन दा के बारे में उसमे लिखूंगा और खूब लिखूंगा आख़िर महानगरों में और कितने सुबीन दा बाकी बचे हैं.....

हृदयेंद्र
२३ तारीख की आधी रात को यूँ ही

फुहार

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प्यार करता हूँ सबसे, आपकी कोई भी मदद बिना नफा नुक्सान सोचे कर दूंगा, अपने गुस्से से बहुत डर लगता है, हमेशा कोशिश रहती है की बस ''गुस्सा'' न आये मुझे, लोग मुझे बहुत अच्छे दोस्त, शरीफ इंसान और एक इमानदार दुश्मन के तौर पर याद रखते हैं, एक बार दुश्मनी कीजिये, देखिये कितनी इमानदारी से ये काम भी करता हूँ,