Wednesday, June 13, 2012

आपने भी धोखा दे दिया हसन साहब


मेहँदी हसन साहब आप भी छोडके चले गए, जबकि हम इंडिया में आपके इलाज का इंतजाम कर रहे थे, अभी पिछले साल की ही बात है, मैं और संजय अभिज्ञान बात कर रहे थे की आपका इंडिया में इलाज कैसे कराया जाए, अपनी जिन्दगी आपको देने पर भी कम लगती, कितना दिया है आपने मुझे, नहीं मालूम होगा न, हैदराबाद में कितना सुनता था, जो भी दुश्मन हो जाता था उससे यही तो कहता था की.....रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ, कितना गुनगुनाया करता था ऑफिस के कारीडोर में, हर कोई यही सोचता की कौन बेवक़ूफ़ ये गाता रहता है, आपको क्या पता, की जिससे भी रंजिश रही, सिर्फ ये लाइन सुनके उससे मिलने का मन करता था, अपने हर उस दोस्त को जो आज दुश्मन बन बैठा है सीने से लगाने का मन करता था, आपको कैसे बताता, मेहँदी हसन साहब की आप क्या थे, हम, राजीव दादा, विज्जू, सभी तो घंटों आपको सुनते थे, घंटो, यकीन जानिए आपकी ये गजल सुनकर हर दुश्मन को माफ़ करने का मन करता था, इन लाइन की बड़ी जरुरत है हसन साहब, सुनूंगा लेकिन आपके बगैर, सब तो खिलाफ हो गए हैं, सब, वो भी, जिसने ढेर सारी तकलीफें झेलकर मुझे ख़ुशी दी थी, सब खिलाफ हो गए हैं, आप रहते, नहीं माफ़ करूँगा कभी नहीं,  आप भी धोखेबाज निकले दूसरों की तरह, अच्छा नहीं किया, माफ़ नहीं कर सकता....कुछ दिन और रुक जाते, हर किसी की तरह आपने भी अपने मन की कर ली, सब अपने मन की ही तो करते हैं मेरी कोई सुनता है भला, जगजीत सर चले गए, कितनी इज्जत करता था, बिना बताये ही चले गए, ठीक नहीं किया, कैसे भूलूंगा आपकी ये लाइन बताइए, बहुत याद आती हैं, अब तो और भी याद आएगी,  जब भी कोई अजीज दोस्त दुश्मन बन बैठेगा, अरे बन ही गया है, पर आपकी कमी खलेगी, शायद यही त्रासदी है मेरे साथ, बहुत प्यार करता हूँ, बिना जाने, समझे लोगों को, तभी तो बिना मेरी फिक्र किये सब मुझे छोडके चले जाते हैं, सब, बहुत तकलीफ है, क्या करूँ....किससे कहूँ, जिंदगीभर का दर्द दे दिया आपने...जिंदगीभर का....बस इतना जरुर याद रहेगा...
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से किसी और से मिलने के लिए आ
किस किसको बताएँगे जुदाई का सबब हम .......काश की वो सरे दुश्मन जो कभी दोस्त थे समझ पाते की कितनी शिद्दत से उन सबको मिस करता हूँ...और हसन साहब आपको भी....बस कभी कह नहीं पाया..कभी नहीं...और आप यूँही चले गए..बिना मेरी बात सुने....कभी माफ़ नहीं करूँगा...कभी नहीं....उम्मीद करता हूँ जल्द मुलाकात होगी...

Tuesday, June 5, 2012

शुक्रिया हसन...

हसन... दोस्त, शानदार फोटोग्राफर और काबिल इंसान 
पिछले कई दिन की घुटन और तकलीफ के बाद अपने अजीज दोस्त हसन जकिजदेह से बातें हुयी, खूब हुई, अचानक बातों बातों में मैंने काबुल पर किताब लिखने की तमन्ना हसन को बता दी, कभी सोचा भी नहीं था की, मेरे दिल के कोने में दबी इस बात को वो शख्स तवज्जो देगा जिसे मेरी भाषा तक नहीं मालूम, लेकिन  यही जिन्दगी है, साली तभी क्लीन बोल्ड करती है जब आप वाकई में क्रीज पर रुकना चाहते हैं, और उस गेंद पर छक्का दे देती है जिसपर आपको भी यकीन नहीं, अभी कुछ दिन पहले सिरिया गया था, मरने के लिए, इस बार भी गैर देश जाने का प्लान बना है, लेकिन मरने नहीं, कुछ सार्थक करने, एक किताब लिखने, अफगानी मेरे दिल में बसते हैं, दुनिया के सबसे पाक और साफदिल लोग, कोई कमीनगी नहीं, हमेशा से जाना चाहता था, कोई सिलसिला नहीं मिल रहा था, लेकिन सिलसिला भी मिला और क्या खूब मिला, हस्सन ने न सिर्फ मेरे रहने बल्कि मेरी किताब लिखने के दौरान जो भी जरुरी चीजें हैं उनके इंतजाम का वादा किया है, पता नहीं लोग मुझे सीरियसली क्यूँ लेते हैं, हसन ने भी सीरियसली ले लिया और १ घंटे की बातों में ही मेरे अफगानिस्तान में रहने, खाने और किताब लिखने के ज्यादातर इंतजाम कर दिए, साला सोचता रहता हूँ की जिनके लिए कुछ नहीं किया वो जान देने का जज्बा रखते हैं और साला जिनके लिए जिन्दगी में सबकुछ कर डाला वो जान लेने पर उतारू हैं, खैर इस पचड़े में नहीं पड़ना, अब मुझे इन्तजार है हसन के इंडिया आने का अगस्त में आएगा और हम प्लान करेंगे की मुझे अफगानिस्तान कब जाना है, तब तक किताब की रफ  प्लानिंग भी बन जाएगी...वाकई में यही सपना बड़े दिन से सीने में था, किताब लिखने का लेकिन शानदार मुद्दे पर, और अब सपना सच होता दिखा रहा है, लेकिन अफ़सोस होगा की मेरी बुक लॉन्च पर एक इंसान नहीं होगा, मेरे पिता, यही तो देखना चाहते थे, पापा, अपने बेटे को सफल, खुश और ढेर सारा खुश....शुक्रिया हसन, मेरे लिए मुट्ठीभर ख़ुशी का इंतजाम करने के लिए, तब जब वाकई में मुझे इनकी जरुरत थी, वैसे किताब का नाम होगा जर्नी टू काबुल, या १०० डेस इन काबुल, वैसे दर भी है की ''माँ'' और ''बिट्टू'' कैसे रहेंगे मेरे बिना लेकिन, सबकुछ होगा ठीक, यही तो उम्मीद है, फिलहाल मुझे हसन की काफी टेबल बुक की लौन्चिंग में शामिल होने काबुल जाना है, उसे इंडिया में बेहतर तरीके से लॉन्च कराना है, बाकि बेहतर ही होगा, क्यूंकि इससे बुरा और क्या हो सकता है मेरे साथ...जो हो चुका है मेरे साथ....कभी कभी खुद से ये सवाल भी पूछता हूँ की इतनी तकलीफें डिसर्व नहीं करता यार फिर भी सारी मेरे हिस्से क्यूँ आती हैं लेकिन कोई नहीं...फिलहाल जिन्दा रहने के लिए एक सपना है उसे जी लूँ, और हाँ उपरवाले कोई ''प्यार करनेवाला'' भेज यार, बहुत जरुरत है...

Friday, March 23, 2012

शुक्रिया भगत सिंह

बेहद शर्मनाक रहा आज का दिन,


सुबह से फेसबुक पर नवरात्रि की बधाइयाँ देनेवालों की लाइन लगी है, किसी नामुराद को ये तक याद नही की आज के दिन तीन

होनहार नौजवानों को फाँसी पर चढ़ा दिया गया,

' उनका कसूर सिर्फ़ इतना था की वो ''हमारे लिए आज़ादी चाहते थे'

घिन आई की मैं उस समाज का हिस्सा हूँ जो नवरात्रों जैसी घिसी पिटी

परंपरा को ढोने के लिए तैयार हैं लेकिन उन्हे शुक्रिया कहने का वक़्त नही जिन्होने हमारी बेहतर... जिंदगी के लिए अपनी जान दे दी..दिल से शुक्रिया डा. हर्षवर्धन, ( सीनियर बीजेपी लीडर), की आज सुबह सुबह आपने अपनी फेसबुक वॉल पर इन शहीदों की कुर्बानी की याद दिलाई बहुत मिस करता हूँ भगत सिंह आपको, इस देश मे एक ही मर्द हुआ है वो आप है, हो सके तो इन्हे दिल से याद कीजिए नवरात्रे तो फिर आ जाएँगे लेकिन आज़ादी दुबारा नही मिलेगी....

हृदयेंद्र



Monday, December 26, 2011

बहुत याद आते हैं पापा...


( डॉक्टर एस पी सिंह )
( 5-8-1954----28-03-2011)
  • एक अद्भुत इंसानपिता और मित्र
  • आप हमेशा याद आएँगे
  • डॉक्टर एस पी सिंह फाउंडेशन आपके देखे हर सपने को पूरा करने की भरपूर कोशिश करेगा पापा. 

जिंदगी की किताब से डीलीट करना चाहूँगा 2011

एक साल जिसे जिंदगी मे कभी याद नही करना चाहूँगा , मेरे सबसे प्यारे दोस्तएक शानदार इंसान और मेरेपिता को मुझसे छीना , दिल्ली मे मेरे सबसे अज़ीज आलोक तोमर सर को छीनास्टीव जॉब्स को छीनाऔर जाते जाते आदम गोंदवी को हमसे दूर ले गयाएक साल जिसे फिर कभी याद नही करना चाहूँगाबुराबहुत बुरा.. बहुत गुस्से मे हूँ, 2011 इसे जिंदगी की किताब से डीलीट करना  चाहूँगा.. 2012 मे अपने पापा के नाम पर डॉक्टर एस पी सिंह फाउंडेशन खोलना चाहूँगाये उनके लिए काम करेगा जिनके सर पर पिता का साया नही है,  .एक ऐसा साल जिसने मेरी जिंदगी बदल दी

हृदयेंद्र 

फुहार

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प्यार करता हूँ सबसे, आपकी कोई भी मदद बिना नफा नुक्सान सोचे कर दूंगा, अपने गुस्से से बहुत डर लगता है, हमेशा कोशिश रहती है की बस ''गुस्सा'' न आये मुझे, लोग मुझे बहुत अच्छे दोस्त, शरीफ इंसान और एक इमानदार दुश्मन के तौर पर याद रखते हैं, एक बार दुश्मनी कीजिये, देखिये कितनी इमानदारी से ये काम भी करता हूँ,