Sunday, October 19, 2008

आना घर में नए मेहमान का....

यूँ तो घर है तोः मेहमानों का आना-जाना लगा रहता है, मेहमान ख़ास हो तोः उसके आने की खुशी भी कुछ ज्यादा होती है, कुछ ऐसी ही ख़ास मेहमान की मेहमाननवाजी में इन दिनों जिंदगी का थोड़ा वक्त कट रहा है, नई मेहमान ऐसे यूँ बिना बताये आएँगी कमसे कम उम्मीद नही थी, पर अब इनका आना कुछ यूँ है की इनके फिर कभी ना जाने की ख्वाहिश जरूर दिल में हैं, एक दिन अपने कमरे से निकलकर सोफे पर सुस्ताने के मकसद से जब बैठने चला तो देखा की बेहद नाजुक, भोली भाली दो आँखें कुछ कहना चाह रही थी, इशारा साफ़ था की मियाँ जिस सोफे पर आप अपनी कमर सीधी करने आए हैं उसपर पहले से ही मेरा यानी उन खातून का कब्जा है, आँखें मिली, दिल तक बात गई और फिर सिलसिला आपका नाम क्या है तक जा पहुँचा, जाहिर है खातून इतनी आसानी से नाम कहाँ बताती हैं और उम्र भी इतनी की बस चलना भर या यूँ कहें की फुदकना भर सीखा है, हर रिश्ते में और और रिश्तेदार का कोई नाम न हो तो मजा नही आता, कुछ यही सोचकर मैं इन मोहतरमा का नाम भी रख दिया है, नाम भी ऐसा वैसा नही अदिति है इनका नाम, वैसे दुनिया के सबसे बड़े जानवर यानि की हम इनको जानवर कहते हैं और मजेदारी देखिये गैर बिरादरी का होने के बावजूद हम इन्हे मामा, मौसी और न जाने किन रिश्तों में अपनी सहूलियतों के मुताबिक जोड़ भी लेते हैं, वैसे अदिति भी मेरी मौसी के खानदान से हैं यानि मेरी मौसी की बेटी, इस नाते मेरी बहन भी हुयी, ( बिल्ली हमारी मौसी ही है, अगर मैं ग़लत नही हूँ तोः) और बहन की मेहमाननवाजी में कमी होः मुझे बर्दाश्त नही है, तोः इन दिनों अदिति की खातिरदारी और उनसे रिश्तों कोई और मजबूत बनाने की जद्दोजहद चल रही है, वो है की मेरी बातों पर बड़ी आसानी से यकीन करने को तैयार नही और मैं हूँ की इंसानियत पर हजार दाग लगने के बावजूद शर्मशार नही),
दरअसल इंसानों से दोस्ती करके कबका मन भर गया है इसीलिए कभी दादा जी के गाँव में गाय, कभी भैस और कभी घोडों से दोस्ती कर ली, और राहत इस बात की रही की कभी इनसे दोस्ती के बदले धोखा और फरेब नही मिला, हमारी प्यारी पार्वती गाय ने हमेशा माँ जैसा दुलार दिया तो चेतक ने पीठ पर लादकर गाँव के खेतों और पगडंडियों का रास्ता बखूबी दिखाया, एक दोस्त की तरह हर बार रास्ता सही पकडाया भले दुश्वारियां कितनी रही हों, फ़िर पिल्लू ने मुझे सौभाग्य दिया एक बेटी का बाप बनने का, पिल्लू यानि जिसका खून धरम पाजी अक्सर फिल्मों में पी जाते हैं, वही पिल्लू, एक पिता हूँ मैं और मुझे हमेशा अपनी बेहद गुस्सैल और समझदार बेटी पर गर्व होता है, इन सबका साथ जिंदगी की आपाधापी में पता नही कहाँ छूट गया लेकिन पता नही इंसान कहलाने वाले जानवरों को आज भी दोस्त बनाने का मन नही करता है, बल्कि जानवर कहलाने वाले इंसानों की तरफ़ हमेशा मन भागता है, उनसे दोस्ती को, प्रेम को और मेहमाननवाजी को, खैर...........
इस बीच शहर बदला लेकिन अपने पुराने दोस्तों का भरोसा और उनका प्यार था की मन यहाँ भी उनसे या उनके छूट गए रिश्तेदारों से ही मिलने का करता है, तभी मौका मिलने पर छोटा चेतन को दोस्त बना लेता हूँ या फिर अदिति से दोस्ती का हाथ बड़ा देता हूँ, दरअसल इनसे दोस्ती पर एक यकीन जरूर कायम रहता है की इस दोस्ती की मुझे कोई कीमत नही चुकानी पड़ेगी और थोड़े से प्यार के बदले बेहिसाब प्यार का भरोसा भी टूटने वाला नही है तभी तो हर बार और बार बार मन किसी अदिति और किसी चेतन को इधर उधर खोजता रहता है, फिलहाल मैं अदिति की सेवा में व्यस्त हूँ मुझे disturb न किया जाए....और हाँ अदिति से इतनी इल्तजा भी कर रहा हूँ की ....
अदिति, हंस दे, हंस दे, हंस दे, हंस दे तू जरा, कभी तो बस थोड़ा-थोड़ा-थोड़ा मुस्कुरा.....
फिलहाल कोशिश जारी है अदिति के मुस्कुराते ही आप सबको ख़बर की जायेगी तब तक के लिए नमस्कार.....
हृदयेंद्र

फुहार

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प्यार करता हूँ सबसे, आपकी कोई भी मदद बिना नफा नुक्सान सोचे कर दूंगा, अपने गुस्से से बहुत डर लगता है, हमेशा कोशिश रहती है की बस ''गुस्सा'' न आये मुझे, लोग मुझे बहुत अच्छे दोस्त, शरीफ इंसान और एक इमानदार दुश्मन के तौर पर याद रखते हैं, एक बार दुश्मनी कीजिये, देखिये कितनी इमानदारी से ये काम भी करता हूँ,