क्रिकेट पसंद करने वाले क्रिकेट भी खूब खेले होंगे लेकिन जवानी के दिनोंमें मोहल्ले के पार्क में क्रिकेट खेलने के मजे को शब्दों में शायद ही बाँधा जा सके भले ही गेंद करीने से बल्ले पर न आ रही हो लेकिन बल्ला इस अदा से घुमाना की टंडन जी की वो बेटी जो इस समय जरा अच्छी अच्छी लगती है उसे जरूर अपनी बल्ला घुमाने की स्टाइल दिख जाए, भले ही फील्डिंग करते समय गेंद बार बार हाथ से छूट जाए लेकिन नजरें सक्सेना जी की बालकोनी पर ही टिकी रहती की उनकी इकलौती प्यारी बेटी का पहला या दूसरा प्यार बनने में कोई कमी तो नहीं रह गयी, भले हर गेंद की बल्लेबाज जमकर धुनाई कर रहा हो लेकिन सिद्दीकी अंकल की बेटी नंबर तीन का ध्यान अगर अपने रन अप पर है तो गेंद की धुनाई की फिक्र किस नामाकूल को है। कुल मिलाकर अगर मोहल्ले के पार्क में खेले जा रहे क्रिकेट मैच को पांच लोगों से ज्यादा लोग भले ही न देख रहे हों लेकिन अगर टंडन अंकल की बेटी नंबर एक और सिद्दीकी अंकल की बेटी नंबर तीन जिन पर अपनी नजर कुछ ज्यादा ही संगीन रहती है हमारा मैच देख रही हों तो फिर दर्शक हों या न हो परवाह किसे है, हमारे एक शोट पर उनका मुस्कुराना ही भारी पड़ जाता था, भले ही पूरी टीम बीस रन बनाकर आउट हो जाए लेकिन अगर एक शोट '' उसने '' देख लिया तो हफ़्तों रात में सपनों में वही शोट और उनकी खिलखिलाहट का रिपीट टेलीकास्ट चलता रहता था, एक अजब सा खुमार मोहल्ले के पार्क में खेले गए क्रिकेट मैच का दिलो दिमाग पर रहता था, नजर गेंद पर कम और इस बात पर ज्यादा रहती थी की मोहल्ले की '' वो'' जिनपर '' ये'' ( यानी दिल) फ़िदा थे वो देख रही हैं या नहीं, बल्ला पकड़ने के बाद किसकी नजर गेंद पर रहती थी, नजर तो बस उनपर होती की उनको हमारे बल्ला घुमाने में मजा आ रहा है या नहीं अगर चेहरे पर खिलखिलाहट होती तो माँ कसम बालर बेचारे की धुनाई होनी तय थी और अगर उनको हमारे बल्ला घुमाने में मजा नहीं आ रहा तो अगली ही बाल में आउट होकर ऐसी हरकत करना शुरू करते जिससे उनको कमसे कम मजा तो आये, भले बेवजह फिसल के यूँही गिर जाना या फिर फील्डिंग के दौरान किसी से टकरा जाना जिसे देखकर कमसेकम वो तो हँसे....
कुल मिलाकर अगर मोहल्ला क्रिकेट हमारे लिए विश्वकप से कम नहीं था तो हम भी धोनी से कम कहाँ थे, और इन सब पर अगर वो मैच देख रहे हों तो फिर कहना ही क्या, जवानी की शुरुआत में वो क्रिकेट मैच उन खूबसूरत यादों की तरह होते हैं जिनको भूलना कोई भी नहीं चाहेगा, सालों बाद उन यादों को यादकर एक बार फिर आपने शहर की उन गलियों और चेहरों को याद करने का मौका मिल गया जिन्हें बहुत पहले ही घर छोड़ते वक़्त पीछे छोड़ आया था...शायद मैं ही नहीं शहर में रहनेवाले हर इंसान को मोहल्ले का क्रिकेट मैच याद होगा भले ही उसकी उम्र कितनी भी हो गयी हो, यही है हमारे मोहल्ले का क्रिकेट .....
हृदयेंद्र
Friday, January 15, 2010
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फुहार
- hridayendra
- प्यार करता हूँ सबसे, आपकी कोई भी मदद बिना नफा नुक्सान सोचे कर दूंगा, अपने गुस्से से बहुत डर लगता है, हमेशा कोशिश रहती है की बस ''गुस्सा'' न आये मुझे, लोग मुझे बहुत अच्छे दोस्त, शरीफ इंसान और एक इमानदार दुश्मन के तौर पर याद रखते हैं, एक बार दुश्मनी कीजिये, देखिये कितनी इमानदारी से ये काम भी करता हूँ,
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