डोली गुप्ता नहीं रही, भाभी थी, मित्र, बड़े भाई, अच्छे इंसान, ब्रजेन्द्र निर्मल की पत्नी थी, यंत्रणा के लम्बे दौर के बाद हमें छोड़ गयी, उनके हाथ का खाना खाने की जरूर खवाहिश थी, इस खवाहिश के अधूरे रहने का वाकई अफ़सोस रहेगा, ईश्वरउन्हें शांति देना, उनके परिवार को ताकत, तुम्ही रास्ता दिखा सकते हो, मैं परेशां हूँ, मन अशांत है, फिर वही सवाल की हर भले आदमी के साथ ही ऐसा क्यूँ होता है, मेरे बरेली में रहने की वजह थे ब्रजेन्द्र भाई साहब, भंडारी जी, वीरेन दा...अब मन उचाट सा हो गया है, नहीं रुकना चाहता इस शहर, भाभी आप बिसलेरी का पानी पीना चाहती थी, अस्पताल के पानी से परेशानी थी, यकीन जानिये मैंने सोच रखा था अगली बार जरूर लाऊंगा मैं आपके लिए पर वो अगली बार नहीं आया, मुझे दुःख है, बच्चों के लिए, ब्रजेन्द्र भाई साहब के लिए...दुखी हूँ , आपके लिए कुछ कर पाता तो अपराध बोध थोडा कम होता, आज खबर लगायी, ऐसा कभी नहीं सोचा था, आपकी मौत की खबर लगाऊंगा, इंसान हूँ, आपकी मौत पर फूट, फूट कर रोना चाहता हूँ, पर बहुत कुछ ऐसा है जो मुझे ऐसा नहीं करने दे रहा...वाकई मामा की मौत के बाद करीब दस साल बाद आज रोना चाहता हूँ, खूब....आपका परिवार इस संकट से उबरे यही प्रार्थना करना चाहूँगा, आपकी आत्मा को शांति मिले...
आपका
हृदयेंद्र
Tuesday, June 8, 2010
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फुहार
- hridayendra
- प्यार करता हूँ सबसे, आपकी कोई भी मदद बिना नफा नुक्सान सोचे कर दूंगा, अपने गुस्से से बहुत डर लगता है, हमेशा कोशिश रहती है की बस ''गुस्सा'' न आये मुझे, लोग मुझे बहुत अच्छे दोस्त, शरीफ इंसान और एक इमानदार दुश्मन के तौर पर याद रखते हैं, एक बार दुश्मनी कीजिये, देखिये कितनी इमानदारी से ये काम भी करता हूँ,
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