दीपक का मतलब होता है दीया..दीया जो रौशनी दे, कितने लोग अपने नाम के मतलब को सार्थक कर पाते हैं, ज्यादातर नहीं, यही जवाब होगा, है न, जब मैं पैदा हुआ तब मेरा नाम रखा गया हृदयेंद्र, हृदयेंद्र मतलब, ह्रदय पर राज करने वाला, आज भी जब हर कुछ अपने ह्रदय का करता हूँ तो लगता है चलो नाम सार्थक हुआ,
अभी दो दिन पहले मित्र दीपक से मिलने गया, देश के सबसे बड़े मीडिया हाउस में कुछ बेहद ख़ास शक्शियतों के बीच चुपचाप सा अकेले में खड़ा दीपक हमेशा की तरह सबसे अलग था, सर पर कम हो चुके बाल, जिनके होने न होने की उसे कभी परवाह भी नहीं थी, वही मासूम सी मुस्कराहट और वही कौतुहल....मेरी ब्रांडेड जैकेट देखकर पूछ बैठना ....महंगी होगी न, जवाब क्या देता, बस यही की तुमसे महंगी नहीं है, तुम्हारे वक़्त से महंगी नहीं है, तुम्हारी आस्थाओं से महंगी नहीं है, तुम्हारे विचारों से महंगी तो बिलकुल भी नहीं है,
दरअसल मैं इंसानों को समझने की कोशिश में आज भी लगा हूँ, शायद इसीलिए मेरी ज्यादातर पोस्ट इंसानों के बारे में ही होती हैं, दीपक भी करोड़ों की भीड़ में एक ऐसा इंसान है, जिसका हमारे बीच होना उतना ही जरूरी है जितना जिन्दा रहने के लिए सांस लेना, दरअसल लखनऊ विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के बेहद चमकते सितारों में एक था दीपक, हमेशा समाज को बेहतर बनाने, जेब में चवन्नी न होने के बावजूद समाज के लिए कुछ करने की तड़प, मरने से पहले कुछ सार्थक करने की उलझन हमेशा मन में चलती रहती थी, लेनिन, मार्क्स, गोर्की और साम्वयाद से नफरत की हद तक नफरत करने के बावजूद दीपक ही था जिसके कहने पर मैंने इनको जानने की कोशिश शुरू की, और शायद साहित्य और संवाद को दीपक के साथ ही गंभीरता से समझ सका था, हम सब जहाँ किस्मत के धनीथे वहीँ अच्छे विचार और अच्छी सोच होने के बावजूद दीपक को एक अदद नौकरी पाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा और बमुश्किल तमाम एक चैंनेलमें नौकरी मिल सकी, हम सबको पता था की दीपक के कद के सामने ये नौकरी बेहद बौनी है लेकिन कर क्या सकते थे, फिर एक दिन अचानक वही हुआ जो हर प्रतिभासाली नौजवान के साथ होता है, किसी की जिद का शिकार दीपक की नौकरी को होना पड़ा, दीपक के लिए सबसे बेहतर चाहने के बावजूद उसके साथ कभी बेहतर तो क्या बुरा भी नहीं हुआ, हमेशा बेहद बुरा होता रहा, अचानक बीमार पिता जिंदगी की जंग हार गए, दीपक की नौकरी चली गयी, और फिर से एक नामी अखबार में शून्य से शुरू करना पड़ा, इन लाख उलझनों, तनावों और दबावों के कभी भी दीपक की खिलखिलाहट में कमी या कमीनगी नहीं देखी, इतना ही नहीं समाज को कुछ बेहतर देकर जाने की जिद वैसे ही बदस्तूर जारी रही, मेरी सुविधाभोगी जिन्दगी पर हमेशा उसी तल्खी के साथ टिप्पड़ी होती रही, मेरे कार्पोरेट ख्यालों पर तंज उसी तीखेपन के साथ छोड़तारहा इसा गरज के साथ की समाज के बेहतर बनाने के जज्बे या संकल्प में कहीं कम ना आ जाए,
मेरे दुसरे आम पात्रों की तरह दीपक भी न कोई मशहूर हस्ती है और न ही कोई स्टार लेकिन मेरे लिए दीपक के होने का मतलब बहुत है, ये जानने के बाद भी की हर मुलाकात के बीच एक लम्बा वक़्त ऐसा भी आएगा जब हम दोनों की बोलचाल तक बंद हो जायेगी कुछ देर के लिए लेकिन फिर भी दीपक ही तो है जो हमको रौशनी देगा, समाज को रौशनी देगा और पत्रकारों का झुण्ड जो एक रेवड़ में तब्दील हो चूका है उसे रौशनी देगा,
बस न भावुक हूँ, न किसी को हीरो बनाने की तम्मन्ना है, न किसी की तारीफों के बेवजह पुल बांधने हैं, बस सिर्फ यही कहना है, की टूट जाने की हद तक टूटने के बावजूद सत्यम, शिवम्, सुन्दरम का संकल्प कितने लोग ले पाते हैं, संगर्ष अच्छे अच्छे आदर्शों को हवा कर देता है, बावजूद इसके अपने उन्ही आदर्शों पर कई बार बेचारगी के साथ ही सही पर खड़े रहने के जज्बे को बार बार सलाम करने को मन करता हैं,
दीपक तुम्हारे लिए इतना ही कहूँगा,
दीपक हो रौशनी देते रहना......
तुम्हारा
हृदयेंद्र
Sunday, December 20, 2009
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फुहार
- hridayendra
- प्यार करता हूँ सबसे, आपकी कोई भी मदद बिना नफा नुक्सान सोचे कर दूंगा, अपने गुस्से से बहुत डर लगता है, हमेशा कोशिश रहती है की बस ''गुस्सा'' न आये मुझे, लोग मुझे बहुत अच्छे दोस्त, शरीफ इंसान और एक इमानदार दुश्मन के तौर पर याद रखते हैं, एक बार दुश्मनी कीजिये, देखिये कितनी इमानदारी से ये काम भी करता हूँ,
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