किसी तंगदिल ने पता नही कब मौका तलाशा और मेरी मोटर साइकिल की गद्दी पर अपनी सारी भड़ास निकाल दी, यानी बड़े सलीके से उसे ब्लेड से चीर दिया, जीवन में ख़ुद से जुड़ी सभी चीजों से बेपनाह प्यार करने के चलते अपनी गाड़ी से भी बेहद प्यार करता हूँ, फटी हुयी गद्दी देखकर दुःख तोः बहुत हुआ पर आप कई बार कुछ नही कर सकते सिवाय मूक दर्शक बनकर चीजों को देखने के, इस प्रवृत्ति को बहुत पहले ही विकसित कर लिया था ताकि जीवन में कम से कम तनाव में रह सकूँ, खैर, अपनी फटी हुयी गद्दी लेकर कई कामचोर किस्म के मोचियों के पास गया लेकिन सबने अपने हाथ खड़े कर दिए, अभी दिमाग में जुगत लगा ही रहा था की सालों पहले नॉएडा में १२-२२ चौराहे पर बेहद बुजुर्ग लेकिन सलीकेदार तरीके से चमड़ेके सामानों की दशा सुधारने वाले बुजुर्ग की याद आ गई , ऑफिस जाते समय रास्ते में नॉएडा के बेहद मशहूर १२-२२ चौराहे से सेक्टर ५६ की तरफ़ मुड़ने वाले कोने पर जाडा, गर्मी और बरसात में कुछ फटे पुराने कपडों में खुले आसमान के नीचे सुबीनदास का ठीहा या यूँ कहें ठिकाना है, बरसों बाद गाड़ी उस ठिकाने पर इस भरोसे के साथ ले गया की सुबीन दा जरूर मेरी दिक्कत का हल करेंगे, पेशे से पत्रकार हूँ पर जिंदगी में बहुत कुछ आज भी नही सीख पाया, मानवता, इंसानियत और दूसरी चीजों की बेहद कम समझ है लेकिन हर बार कुछ न कुछ ऐसा होता है जो इन चीजों पर गंभीरता से सोचने पर मजबूर करता है....खैर
आज भी गाड़ी लेकर सुबीन दा के पास पहुँचा, पहले से काफ़ी बुजुर्ग हो चुके थे, दुआ सलाम के बाद उस बुजुर्ग ने न केवल मेरी दिक्कत का हल निकाला बल्कि मुझे अपने बेहद पुराने बैग से एक अदद मिठाई का टुकडा दिया , इस तंगदिल शहर में अरसे बाद किसी अजनबी से मिलने पर एक बेहद गरीब आदमी जिसके रहने का ठिकाना भी नही है लेकिन बेहद गुरबत में भी अपने संस्कारों के प्रति इतना संवेदनशील होना और एक खाए- अघाए आदमी को भी मेहमान समझना और मिठाई का टुकडा बेहद प्यार से देना भीतर तक छु गया, पैसे और ज्यादा पैसे कमाने के चक्कर में सिर्फ़ और सिर्फ़ ख़ुद को खुदा माननेवाले इस शहर में अरसे बाद सुबीन दा ने एक सबक दिया , जाती व्यवस्था में सबसे ऊँची पायदान पर होने का अहम् अक्सर जोर मार जाता है लेकिन कभी जिसे हमारे यहाँ पैरों के नीचे रखा जाता था आज उसी इंसान के पाँव पड़ने का मन कर रहा था, कुछ पेशे की मजबूरी और कुछ जमाने की , सुबीन दा के पैर तो नही छु सका लेकिन गद्दी फटने का गम ना जाने कहाँ गायब हो गया था और साल भर बाद एक बेहद साधारण इंसान ने मुझे एक कभी न भूलनेवाला सबक दे दिया था, यकीनन जिंदगी कुछ यूँ ही सबक सिखा जाती है ...खैर उन एक घंटों में सुबीन दा ने करीब तीन कहानियाँ सुनाई और अपने मेहनाते को लेने से साफ़ इनकार कर दिया, बदले में उन्हें अपनी जेब में रखे सारे पैसे दे देना चाहता था लेकिन मालोम था की इन पैसों से उनकी दिक्कतें कभी कम नही होंगी बतौर एक पत्रकार ये वादा जरूर किया की किसी दिक्कत पर सबसे पहले खड़े होनेवालों मैं मैं होऊंगा ....यकीनन मुझे होना ही होगा उनके लिए और अपनी इंसानियत के लिए ....किताब लिखने का इरादा है उसमे बहुत कुछ लिख भी चुका हूँ कभी सुबीन दा के बारे में उसमे लिखूंगा और खूब लिखूंगा आख़िर महानगरों में और कितने सुबीन दा बाकी बचे हैं.....
हृदयेंद्र
२३ तारीख की आधी रात को यूँ ही
Thursday, April 23, 2009
Monday, March 9, 2009
होलिया में उडे रे गुलाल
रंगों का त्यौहार
कहीं हजार, कहीं दिल के पार
कहीं महक, कहीं थोड़ा सा प्यार
थोडी जिन्दादिली, थोडी मशक्कत
थोडी जिद , थोडी मनुहार
कुछ आर पार
पता नही क्या
दीखता शीशे सा साफ़
न कोई इश्तिहार
कुछ रंग कुछ मौसम
कुछ दिल कुछ जबान
कुछ मोहब्बत कुछ अफसाना
कुछ कुछ हर कहीं
दिल में, तन में, मन में, हर कहीं
बहार
बौछार
प्यार
दुलार
और फ़िर
हर कहीं झूमती
बस एक अदद बयार
यही तो है
रंगों का त्यौहार...
उमंगो का त्यौहार
अपनी और उसकी कुछ अनकही
एक बार फ़िर से न कहने का त्यौहार
फलक फैलाकर
अपने सीने में समटने का त्यौहार
यही होगा तुम्हारे और मेरे जज्बातों का
कुछ अनकहा सा शायद '' त्यौहार''
'' हृदयेंद्र''
कहीं हजार, कहीं दिल के पार
कहीं महक, कहीं थोड़ा सा प्यार
थोडी जिन्दादिली, थोडी मशक्कत
थोडी जिद , थोडी मनुहार
कुछ आर पार
पता नही क्या
दीखता शीशे सा साफ़
न कोई इश्तिहार
कुछ रंग कुछ मौसम
कुछ दिल कुछ जबान
कुछ मोहब्बत कुछ अफसाना
कुछ कुछ हर कहीं
दिल में, तन में, मन में, हर कहीं
बहार
बौछार
प्यार
दुलार
और फ़िर
हर कहीं झूमती
बस एक अदद बयार
यही तो है
रंगों का त्यौहार...
उमंगो का त्यौहार
अपनी और उसकी कुछ अनकही
एक बार फ़िर से न कहने का त्यौहार
फलक फैलाकर
अपने सीने में समटने का त्यौहार
यही होगा तुम्हारे और मेरे जज्बातों का
कुछ अनकहा सा शायद '' त्यौहार''
'' हृदयेंद्र''
Sunday, February 22, 2009
एक दिन दोस्तों के नाम...
बचपन से ही यारबाजी में महारत हासिल कर रखी है या यूँ कहें की बिना यारबाजी के चैन नहीं मिलता, आखिरी तमन्ना भी यही है की दोस्तों के बीच ही अंतिम सांस टूटे, अरसे से दिल्ली के चूतियापों से ऊब हो गयी थी, तरीका भी कुछ सूझ नहीं रहा था, लेकिन हर सुबह शानदार नहीं होती, देर रात घर लौटने और अमूमन लोगों के जागने के समय सोने के कारण अपनी सुबह कोई दोपहर एक बजे के करीब होती है, दुनिया भले इसे दोपहर कहती हो पर ''जब जागो तभी सवेरा'' तोः अपनी सुबह इतने ही वक़्त होती है, अभी ठीक से आँख खुल भी न पायी की दिन की शुरुआत बड़े भाई समान ''आदर्श दादा'' के फ़ोन से हुयी, इधर बात ख़त्म हुयी उधर निखिल और अजित सिंह का आना हुआ, जब दिमाग की दही हो जाए और इतने बड़े शहर में बोअरियत होने लगे तोः दोस्तों का मिलना किसी कीमती वस्तुके मिलने से भी कहीं ज्यादा सुखद अनुभूति का एहसास कराती है, लगा की वक़्त को समेट लिया जाए, पर न मेरे हाथ में वक़्त आने से रहा न वक़्त का गुजरना, एक बार फिर दोस्तों के करीब होने का मतलब सबसे ज्यादा पता चला और ये भी की ''दोस्त जिन्दा मुलाकात बाकी'' अगर आप भी जिंदगी से ऊब गए हों तोः दोस्तों से मिलें, अच्छा और तरोताजा महसूस करेंगे, और अचानक दोस्तों से मिलें उन्हें खोजें और उनके साथ कुछ वक़्त बिताएं ......उर्जा से लबालब होने के लिए इससे सस्ता नुस्खा किसी हकीम के पास भी शायद ही होः,
वैसे कई दोस्तों को शिकायत है की उन्हें वक़्त नहीं दे पाता ''काकू'' भी यही कहता है लेकिन मिलने के लिए मिला जाए इसलिए बहुतों से नहीं मिलता , काश की '' काकू'' समेट बहुत से दोस्त इस मजबूरी को समझ पाते, लेकिन अब सोचा है की हर हफ्ते किसी करीबी दोस्त से जरुर मिलूँगा, लिस्ट बहुत लम्बी है और वक़्त बहुत कम है इसलिए मैं भी अभी से जुट जाता हूँ दोस्तों से मिलने की योजना बनाने में और आप भी बना लीजिये अपनी योजना....
इस बीच बहुत याद आती है कभी दिल के बेहद करीब रहे आशुतोष नारायण सिंह ( मौजूदा समय में आई बी एन -७ में किसी महत्वपूर्ण पद पर) , प्रमिला दीक्षित ( आजतक की बेहद उर्जावान रिपोर्टर ), वीरेंदर श्रीवास्तव ( स्टार टीवी में इंजिनियर ), दीपांकर नंदी ( आजतक) और तनसीम हैदर (आजतक) के साथ विनय शौरी ( क्राइम रिपोर्टर दैनिक जागरण, पटियाला) की.... इन सबने यारबाजी की मिसाल कायम की थी कभी अगर दोस्ती का इतिहास लिखा जाता तोः इन सबका नाम मैं जरुर उस किताब में लिखवाने की हर मुमकिन कोशिश करता, किसी के लिए अपना इम्तिहान छोड़ देना( आशुतोष) , एक दोस्त के आयोजन को सफल बनाने के लिए तपते बुखार मेंजी जान लगाकर आयोजन को सफल बनाना( प्रमिला) , गर्मियों में बिजली गुल हो जाने पर कमरे में बंद होकर नंगे होकर नाचना( वीरेंदर), बेहद गुरबत के दिनों में भी जूनियरों को छोटे भाइयों की तरह ट्रीट करना( दीपंकर दादा) , ई टी वी में मेरे हर दुःख दर्द को अपने सर लेना( तनसीम भाई) और एक अजनबी शहर में किसी कमी का महसूस न होने देना(शौरी पाजी) आज भी ठीक वैसे याद है , कुछ खफा हो गए कुछ खो गए कुछ से मिलने का वक़्त नहीं मिलता लेकिन आज भी एक दिन तोः क्या जिंदगी उन्ही दोस्तों के नाम करने का मन करता है, हर बार बार बार .....अगर किसी को आशुतोष, प्रमिला और दीपंकर दादा का नंबर मिले तोः भेजनेकी तकलीफ करें मेरी बहुत शुभकामनायें आपको मिलेंगी, बाकी ''अजनबी शहर है दोस्त मिलाते रहिये, दिल मिले तभी हाथ मिलाते रहिये ''...सभी दोस्तों की बेहतरी और शानदार जिंदगी की दुआ के साथ
''हृदयेंद्र ''
वैसे कई दोस्तों को शिकायत है की उन्हें वक़्त नहीं दे पाता ''काकू'' भी यही कहता है लेकिन मिलने के लिए मिला जाए इसलिए बहुतों से नहीं मिलता , काश की '' काकू'' समेट बहुत से दोस्त इस मजबूरी को समझ पाते, लेकिन अब सोचा है की हर हफ्ते किसी करीबी दोस्त से जरुर मिलूँगा, लिस्ट बहुत लम्बी है और वक़्त बहुत कम है इसलिए मैं भी अभी से जुट जाता हूँ दोस्तों से मिलने की योजना बनाने में और आप भी बना लीजिये अपनी योजना....
इस बीच बहुत याद आती है कभी दिल के बेहद करीब रहे आशुतोष नारायण सिंह ( मौजूदा समय में आई बी एन -७ में किसी महत्वपूर्ण पद पर) , प्रमिला दीक्षित ( आजतक की बेहद उर्जावान रिपोर्टर ), वीरेंदर श्रीवास्तव ( स्टार टीवी में इंजिनियर ), दीपांकर नंदी ( आजतक) और तनसीम हैदर (आजतक) के साथ विनय शौरी ( क्राइम रिपोर्टर दैनिक जागरण, पटियाला) की.... इन सबने यारबाजी की मिसाल कायम की थी कभी अगर दोस्ती का इतिहास लिखा जाता तोः इन सबका नाम मैं जरुर उस किताब में लिखवाने की हर मुमकिन कोशिश करता, किसी के लिए अपना इम्तिहान छोड़ देना( आशुतोष) , एक दोस्त के आयोजन को सफल बनाने के लिए तपते बुखार मेंजी जान लगाकर आयोजन को सफल बनाना( प्रमिला) , गर्मियों में बिजली गुल हो जाने पर कमरे में बंद होकर नंगे होकर नाचना( वीरेंदर), बेहद गुरबत के दिनों में भी जूनियरों को छोटे भाइयों की तरह ट्रीट करना( दीपंकर दादा) , ई टी वी में मेरे हर दुःख दर्द को अपने सर लेना( तनसीम भाई) और एक अजनबी शहर में किसी कमी का महसूस न होने देना(शौरी पाजी) आज भी ठीक वैसे याद है , कुछ खफा हो गए कुछ खो गए कुछ से मिलने का वक़्त नहीं मिलता लेकिन आज भी एक दिन तोः क्या जिंदगी उन्ही दोस्तों के नाम करने का मन करता है, हर बार बार बार .....अगर किसी को आशुतोष, प्रमिला और दीपंकर दादा का नंबर मिले तोः भेजनेकी तकलीफ करें मेरी बहुत शुभकामनायें आपको मिलेंगी, बाकी ''अजनबी शहर है दोस्त मिलाते रहिये, दिल मिले तभी हाथ मिलाते रहिये ''...सभी दोस्तों की बेहतरी और शानदार जिंदगी की दुआ के साथ
''हृदयेंद्र ''
Sunday, December 7, 2008
एक बीमारी का जाना दूर बहुत दूर...
अक्सर वर्क प्लेस में सहयोगी कहे जाने वाले असहयोगियों को झेलना ज्यादातर की या तो मजबूरी होती है या फ़िर आदत...लेकिन हो न हो... ज्यादातर लोग इस दिक्कत से दो चार जरूर होते हैं...ऐसी ही एक दिक्कत से छुटकारा पाने के चलते फील गुड का एहसास कर रहा हूँ, संस्थान के परम कमीने असहयोगी के ऑफिस में न होने से आपकी कार्यक्षमता का असल अंदाजा तभी लगता है..हर ऑफिस की तरह शायद हम सबों के बुरे कर्मो का फल इन महोदय के साथ के रूप में मिला, और अपनी कमीनगी से इन महोदय ने न सिर्फ़ पूरे ऑफिस की थोक में गालियाँ खायी बल्कि ढेर सारी बद्दुआएं भी साथ लेते रहे, लेकिन भला हो इनके घटिया संस्कारों का की महाशय अपनी कमीनगी से इंच भर भी नही हटे और दूसरो के लिए हमेशा परेशानी का सबब बने रहे...आज वाकई हम सुब उस फर्क को महसूस कर रहे हैं जो एक घटिया और कमीने इंसान के अपने बीच न होने से होता है...आख़िर दुनिया को सच और सही रास्ते का ज्ञान देने का ख़म ठोंकने वाले एक अदना से जानवर कहलाने वाले इंसान से डर जाएँ, सुनने में अजीब लगता है, लेकिन सच है..दरअसल हर ऑफिस की यही कहानी है और हर कहीं हम ऐसे घटिया और निकम्मे जानवरों से लड़ने में ना जाने कितनी उर्जा बरबाद करते हैं, क्या किसी ऑफिस में या किसी कंपनी में ऐसे तत्वों से निपटने के लिए कोई योजना बनाई जायेगी ताकि ऑफिस के ज्यादातर लोगों की उर्जा को बरबाद होने से बचाया जा सके...( जानकारी के लिए ये भी की महिलाओं पर कार्यक्रम बनाने वाले चैनल को अपनी नकारात्मक उर्जा और कमीनगी से सराबोर करने के लिए महान आत्मा पदार्पण कर चुकी है, ऐसे में अपनी पूरी सहानुभूति उस चैनल के कर्मठ काम करनेवालों के प्रति रखते हुए, उन सभी के सुखद जीवन की कामना और उस महान आत्मा को धन्यवाद के साथ (हमारा पीछा छोड़ने के लिए) और इश्वर से ऐसी दुरात्माओं को बनाने के लिए घोर शिकायत के साथ ...पुनश्च
''हृदयेंद्र''
समझ नही आता
मौसम का कुछ यूँ रंग बदलना
इंसानों की तरह,
समझ नही आता
इंसानों का रंग बदलना इन्द्रधनुष सा
समझ नही आता
बरसना बेमौसम में
जज्बातों का
समझ नही आता
गर्मी और सर्दी के बीच का इतना लंबा फासला
समझ नही आता
दोस्त कहकर भी दुश्मन सा बने रहना
समझ नही आता
अगर आपको आ जाए समझना तो
जरूर समझाइएगा
समझना चाहता हूँ
जिंदगी की उलझनों को
''हृदयेंद्र''
८.१२.०८
इंसानों की तरह,
समझ नही आता
इंसानों का रंग बदलना इन्द्रधनुष सा
समझ नही आता
बरसना बेमौसम में
जज्बातों का
समझ नही आता
गर्मी और सर्दी के बीच का इतना लंबा फासला
समझ नही आता
दोस्त कहकर भी दुश्मन सा बने रहना
समझ नही आता
अगर आपको आ जाए समझना तो
जरूर समझाइएगा
समझना चाहता हूँ
जिंदगी की उलझनों को
''हृदयेंद्र''
८.१२.०८
Sunday, October 19, 2008
आना घर में नए मेहमान का....
यूँ तो घर है तोः मेहमानों का आना-जाना लगा रहता है, मेहमान ख़ास हो तोः उसके आने की खुशी भी कुछ ज्यादा होती है, कुछ ऐसी ही ख़ास मेहमान की मेहमाननवाजी में इन दिनों जिंदगी का थोड़ा वक्त कट रहा है, नई मेहमान ऐसे यूँ बिना बताये आएँगी कमसे कम उम्मीद नही थी, पर अब इनका आना कुछ यूँ है की इनके फिर कभी ना जाने की ख्वाहिश जरूर दिल में हैं, एक दिन अपने कमरे से निकलकर सोफे पर सुस्ताने के मकसद से जब बैठने चला तो देखा की बेहद नाजुक, भोली भाली दो आँखें कुछ कहना चाह रही थी, इशारा साफ़ था की मियाँ जिस सोफे पर आप अपनी कमर सीधी करने आए हैं उसपर पहले से ही मेरा यानी उन खातून का कब्जा है, आँखें मिली, दिल तक बात गई और फिर सिलसिला आपका नाम क्या है तक जा पहुँचा, जाहिर है खातून इतनी आसानी से नाम कहाँ बताती हैं और उम्र भी इतनी की बस चलना भर या यूँ कहें की फुदकना भर सीखा है, हर रिश्ते में और और रिश्तेदार का कोई नाम न हो तो मजा नही आता, कुछ यही सोचकर मैं इन मोहतरमा का नाम भी रख दिया है, नाम भी ऐसा वैसा नही अदिति है इनका नाम, वैसे दुनिया के सबसे बड़े जानवर यानि की हम इनको जानवर कहते हैं और मजेदारी देखिये गैर बिरादरी का होने के बावजूद हम इन्हे मामा, मौसी और न जाने किन रिश्तों में अपनी सहूलियतों के मुताबिक जोड़ भी लेते हैं, वैसे अदिति भी मेरी मौसी के खानदान से हैं यानि मेरी मौसी की बेटी, इस नाते मेरी बहन भी हुयी, ( बिल्ली हमारी मौसी ही है, अगर मैं ग़लत नही हूँ तोः) और बहन की मेहमाननवाजी में कमी होः मुझे बर्दाश्त नही है, तोः इन दिनों अदिति की खातिरदारी और उनसे रिश्तों कोई और मजबूत बनाने की जद्दोजहद चल रही है, वो है की मेरी बातों पर बड़ी आसानी से यकीन करने को तैयार नही और मैं हूँ की इंसानियत पर हजार दाग लगने के बावजूद शर्मशार नही),
दरअसल इंसानों से दोस्ती करके कबका मन भर गया है इसीलिए कभी दादा जी के गाँव में गाय, कभी भैस और कभी घोडों से दोस्ती कर ली, और राहत इस बात की रही की कभी इनसे दोस्ती के बदले धोखा और फरेब नही मिला, हमारी प्यारी पार्वती गाय ने हमेशा माँ जैसा दुलार दिया तो चेतक ने पीठ पर लादकर गाँव के खेतों और पगडंडियों का रास्ता बखूबी दिखाया, एक दोस्त की तरह हर बार रास्ता सही पकडाया भले दुश्वारियां कितनी रही हों, फ़िर पिल्लू ने मुझे सौभाग्य दिया एक बेटी का बाप बनने का, पिल्लू यानि जिसका खून धरम पाजी अक्सर फिल्मों में पी जाते हैं, वही पिल्लू, एक पिता हूँ मैं और मुझे हमेशा अपनी बेहद गुस्सैल और समझदार बेटी पर गर्व होता है, इन सबका साथ जिंदगी की आपाधापी में पता नही कहाँ छूट गया लेकिन पता नही इंसान कहलाने वाले जानवरों को आज भी दोस्त बनाने का मन नही करता है, बल्कि जानवर कहलाने वाले इंसानों की तरफ़ हमेशा मन भागता है, उनसे दोस्ती को, प्रेम को और मेहमाननवाजी को, खैर...........
इस बीच शहर बदला लेकिन अपने पुराने दोस्तों का भरोसा और उनका प्यार था की मन यहाँ भी उनसे या उनके छूट गए रिश्तेदारों से ही मिलने का करता है, तभी मौका मिलने पर छोटा चेतन को दोस्त बना लेता हूँ या फिर अदिति से दोस्ती का हाथ बड़ा देता हूँ, दरअसल इनसे दोस्ती पर एक यकीन जरूर कायम रहता है की इस दोस्ती की मुझे कोई कीमत नही चुकानी पड़ेगी और थोड़े से प्यार के बदले बेहिसाब प्यार का भरोसा भी टूटने वाला नही है तभी तो हर बार और बार बार मन किसी अदिति और किसी चेतन को इधर उधर खोजता रहता है, फिलहाल मैं अदिति की सेवा में व्यस्त हूँ मुझे disturb न किया जाए....और हाँ अदिति से इतनी इल्तजा भी कर रहा हूँ की ....
अदिति, हंस दे, हंस दे, हंस दे, हंस दे तू जरा, कभी तो बस थोड़ा-थोड़ा-थोड़ा मुस्कुरा.....
फिलहाल कोशिश जारी है अदिति के मुस्कुराते ही आप सबको ख़बर की जायेगी तब तक के लिए नमस्कार.....
हृदयेंद्र
दरअसल इंसानों से दोस्ती करके कबका मन भर गया है इसीलिए कभी दादा जी के गाँव में गाय, कभी भैस और कभी घोडों से दोस्ती कर ली, और राहत इस बात की रही की कभी इनसे दोस्ती के बदले धोखा और फरेब नही मिला, हमारी प्यारी पार्वती गाय ने हमेशा माँ जैसा दुलार दिया तो चेतक ने पीठ पर लादकर गाँव के खेतों और पगडंडियों का रास्ता बखूबी दिखाया, एक दोस्त की तरह हर बार रास्ता सही पकडाया भले दुश्वारियां कितनी रही हों, फ़िर पिल्लू ने मुझे सौभाग्य दिया एक बेटी का बाप बनने का, पिल्लू यानि जिसका खून धरम पाजी अक्सर फिल्मों में पी जाते हैं, वही पिल्लू, एक पिता हूँ मैं और मुझे हमेशा अपनी बेहद गुस्सैल और समझदार बेटी पर गर्व होता है, इन सबका साथ जिंदगी की आपाधापी में पता नही कहाँ छूट गया लेकिन पता नही इंसान कहलाने वाले जानवरों को आज भी दोस्त बनाने का मन नही करता है, बल्कि जानवर कहलाने वाले इंसानों की तरफ़ हमेशा मन भागता है, उनसे दोस्ती को, प्रेम को और मेहमाननवाजी को, खैर...........
इस बीच शहर बदला लेकिन अपने पुराने दोस्तों का भरोसा और उनका प्यार था की मन यहाँ भी उनसे या उनके छूट गए रिश्तेदारों से ही मिलने का करता है, तभी मौका मिलने पर छोटा चेतन को दोस्त बना लेता हूँ या फिर अदिति से दोस्ती का हाथ बड़ा देता हूँ, दरअसल इनसे दोस्ती पर एक यकीन जरूर कायम रहता है की इस दोस्ती की मुझे कोई कीमत नही चुकानी पड़ेगी और थोड़े से प्यार के बदले बेहिसाब प्यार का भरोसा भी टूटने वाला नही है तभी तो हर बार और बार बार मन किसी अदिति और किसी चेतन को इधर उधर खोजता रहता है, फिलहाल मैं अदिति की सेवा में व्यस्त हूँ मुझे disturb न किया जाए....और हाँ अदिति से इतनी इल्तजा भी कर रहा हूँ की ....
अदिति, हंस दे, हंस दे, हंस दे, हंस दे तू जरा, कभी तो बस थोड़ा-थोड़ा-थोड़ा मुस्कुरा.....
फिलहाल कोशिश जारी है अदिति के मुस्कुराते ही आप सबको ख़बर की जायेगी तब तक के लिए नमस्कार.....
हृदयेंद्र
Saturday, June 21, 2008
नसों से रिसते दर्द की दास्ताँ...

मीडिया के बेहद करीबी मित्र हैं नितिन श्रीवास्तव, इस वक्त इंडिया न्यूज़ चैनल के प्रोड्यूसर हैं, पिछले कई वर्षों से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में हैं तोः इस मीडिया की जरुरी दिक्कत वक्त की कमी के शिकार हमेशा रहते हैं, इसकी वजह से मुझे भी अक्सर वक्त नही दे पाते और मेरे कोप का भाजन बनते रहते हैं, कई बार बरास्ते मेल और फ़ोन मेरे कठोर वचन सुनते रहते हैं, बेहद गहरी आंखों की गहराई से मुझे देखकर सिवाय हंस देने के इनके पास कभी कोई चारा नही रहता, मेरे गुस्से को सही जगह लगाने के लिए अक्सर कुछ बेहतर चीजें और पंक्तियाँ मुझे मेल करते रहते हैं ताकि अपना दिमाग ठिकाने रख सकूँ, मीडिया में मेरे तमाम शुभचिंतकों की तरह हमेशा अच्छी और सबसे बेहतर सलाह देते रहते हैं...
आज सुबह भी नितिन की मेल आई, इनबोक्स में मेल देखते ही राहत हुयी की कुछ बेहतर ही होगा पदने लायक, सब काम ख़त्म करके नितिन की मेल पदने का मन बनाया, उस वक्त मुझे भी एहसास नही था की नितिन की मेल देखकर मेरी रूह कांप जायेगी, वैसे रूह कितना कापी कितना तकलीफ हुयी इसका पैमाना तोः नही था लेकिन तस्वीर ने जो कहा वो बहुत दुखदायी था, एक तरफ़ मौर्या शेरेटन और लुटियन की दिल्ली की भव्यता दूसरी तरफ़ संवेदनाओं को भी चरम तक चोट पहुंचाने वाली घोर गरीबी...दरअसल मेल में एक भूख से जर्जर हुए और जिन्दा रहने के लिए जद्दोजहद करते बच्चे की तस्वीर थी जो अन्न का एक टुकडा पाने के लिए संघर्ष करने में जुटा था, तस्वीर को देखकर जो होना था वह तोः हुआ ही लेकिन इस बीच एक संकल्प जरूर बेहद मजबूती के साथ मन में उपजा, की कम से कम अन्न की बर्बादी और दिखावे का नंगा नाच करने से जीवन में जितना बचा जा सके बचने की जरुर कोशिश करूँगा...यही है वो तस्वीर और येः है एक जरुरी जानकारी जो देश की बहुत सी भूखी आत्माओं को तृप्त कर सकेगी हमारे और आपके सहयोग से...
मेरी और शायद मुझ जैसे तमाम इंसान कहे जाने वाले लोगों की आत्माओं को अरसे बाद इस कदर झकझोरने के लिए नितिन को साधुवाद..इस तस्वीर के साथ कुछ शब्द लिखे हैं जिनका मतलब है इस कड़ी को टूटने न दें, तोः यही अपील की इस कड़ी को संवेदनाओं और इंसानियत के मापदंडों पर रखकर इसे टूटने न दें...
पत्रकारों की संवेदनशील जमात में खड़ा होने के लिए नितिन मेरी तरफ़ से साधुवाद, तुमने जो जीवन भर किया है उन्ही तर्कों,विचारों और सिद्धांतों पर कायम हो ये कम से कम मेरे लिए राहत की बात है...
''हृदयेंद्र''
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फुहार
- hridayendra
- प्यार करता हूँ सबसे, आपकी कोई भी मदद बिना नफा नुक्सान सोचे कर दूंगा, अपने गुस्से से बहुत डर लगता है, हमेशा कोशिश रहती है की बस ''गुस्सा'' न आये मुझे, लोग मुझे बहुत अच्छे दोस्त, शरीफ इंसान और एक इमानदार दुश्मन के तौर पर याद रखते हैं, एक बार दुश्मनी कीजिये, देखिये कितनी इमानदारी से ये काम भी करता हूँ,