Sunday, December 7, 2008

एक बीमारी का जाना दूर बहुत दूर...

अक्सर वर्क प्लेस में सहयोगी कहे जाने वाले असहयोगियों को झेलना ज्यादातर की या तो मजबूरी होती है या फ़िर आदत...लेकिन हो न हो... ज्यादातर लोग इस दिक्कत से दो चार जरूर होते हैं...ऐसी ही एक दिक्कत से छुटकारा पाने के चलते फील गुड का एहसास कर रहा हूँ, संस्थान के परम कमीने असहयोगी के ऑफिस में न होने से आपकी कार्यक्षमता का असल अंदाजा तभी लगता है..हर ऑफिस की तरह शायद हम सबों के बुरे कर्मो का फल इन महोदय के साथ के रूप में मिला, और अपनी कमीनगी से इन महोदय ने न सिर्फ़ पूरे ऑफिस की थोक में गालियाँ खायी बल्कि ढेर सारी बद्दुआएं भी साथ लेते रहे, लेकिन भला हो इनके घटिया संस्कारों का की महाशय अपनी कमीनगी से इंच भर भी नही हटे और दूसरो के लिए हमेशा परेशानी का सबब बने रहे...आज वाकई हम सुब उस फर्क को महसूस कर रहे हैं जो एक घटिया और कमीने इंसान के अपने बीच न होने से होता है...आख़िर दुनिया को सच और सही रास्ते का ज्ञान देने का ख़म ठोंकने वाले एक अदना से जानवर कहलाने वाले इंसान से डर जाएँ, सुनने में अजीब लगता है, लेकिन सच है..दरअसल हर ऑफिस की यही कहानी है और हर कहीं हम ऐसे घटिया और निकम्मे जानवरों से लड़ने में ना जाने कितनी उर्जा बरबाद करते हैं, क्या किसी ऑफिस में या किसी कंपनी में ऐसे तत्वों से निपटने के लिए कोई योजना बनाई जायेगी ताकि ऑफिस के ज्यादातर लोगों की उर्जा को बरबाद होने से बचाया जा सके...( जानकारी के लिए ये भी की महिलाओं पर कार्यक्रम बनाने वाले चैनल को अपनी नकारात्मक उर्जा और कमीनगी से सराबोर करने के लिए महान आत्मा पदार्पण कर चुकी है, ऐसे में अपनी पूरी सहानुभूति उस चैनल के कर्मठ काम करनेवालों के प्रति रखते हुए, उन सभी के सुखद जीवन की कामना और उस महान आत्मा को धन्यवाद के साथ (हमारा पीछा छोड़ने के लिए) और इश्वर से ऐसी दुरात्माओं को बनाने के लिए घोर शिकायत के साथ ...पुनश्च

''हृदयेंद्र''

1 comment:

RAJNISH PARIHAR said...

इसी तरह की एक बीमारी हमारे स्कूल में भी थी.ये महाशय बोलनेमे,बहस करने में और तर्क वितर्क.करने में डिप्लोमा लिए हुए थे...आपकी ही तरह हमें भी अभी मुक्ति मिली है....

फुहार

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प्यार करता हूँ सबसे, आपकी कोई भी मदद बिना नफा नुक्सान सोचे कर दूंगा, अपने गुस्से से बहुत डर लगता है, हमेशा कोशिश रहती है की बस ''गुस्सा'' न आये मुझे, लोग मुझे बहुत अच्छे दोस्त, शरीफ इंसान और एक इमानदार दुश्मन के तौर पर याद रखते हैं, एक बार दुश्मनी कीजिये, देखिये कितनी इमानदारी से ये काम भी करता हूँ,