Tuesday, June 5, 2012

शुक्रिया हसन...

हसन... दोस्त, शानदार फोटोग्राफर और काबिल इंसान 
पिछले कई दिन की घुटन और तकलीफ के बाद अपने अजीज दोस्त हसन जकिजदेह से बातें हुयी, खूब हुई, अचानक बातों बातों में मैंने काबुल पर किताब लिखने की तमन्ना हसन को बता दी, कभी सोचा भी नहीं था की, मेरे दिल के कोने में दबी इस बात को वो शख्स तवज्जो देगा जिसे मेरी भाषा तक नहीं मालूम, लेकिन  यही जिन्दगी है, साली तभी क्लीन बोल्ड करती है जब आप वाकई में क्रीज पर रुकना चाहते हैं, और उस गेंद पर छक्का दे देती है जिसपर आपको भी यकीन नहीं, अभी कुछ दिन पहले सिरिया गया था, मरने के लिए, इस बार भी गैर देश जाने का प्लान बना है, लेकिन मरने नहीं, कुछ सार्थक करने, एक किताब लिखने, अफगानी मेरे दिल में बसते हैं, दुनिया के सबसे पाक और साफदिल लोग, कोई कमीनगी नहीं, हमेशा से जाना चाहता था, कोई सिलसिला नहीं मिल रहा था, लेकिन सिलसिला भी मिला और क्या खूब मिला, हस्सन ने न सिर्फ मेरे रहने बल्कि मेरी किताब लिखने के दौरान जो भी जरुरी चीजें हैं उनके इंतजाम का वादा किया है, पता नहीं लोग मुझे सीरियसली क्यूँ लेते हैं, हसन ने भी सीरियसली ले लिया और १ घंटे की बातों में ही मेरे अफगानिस्तान में रहने, खाने और किताब लिखने के ज्यादातर इंतजाम कर दिए, साला सोचता रहता हूँ की जिनके लिए कुछ नहीं किया वो जान देने का जज्बा रखते हैं और साला जिनके लिए जिन्दगी में सबकुछ कर डाला वो जान लेने पर उतारू हैं, खैर इस पचड़े में नहीं पड़ना, अब मुझे इन्तजार है हसन के इंडिया आने का अगस्त में आएगा और हम प्लान करेंगे की मुझे अफगानिस्तान कब जाना है, तब तक किताब की रफ  प्लानिंग भी बन जाएगी...वाकई में यही सपना बड़े दिन से सीने में था, किताब लिखने का लेकिन शानदार मुद्दे पर, और अब सपना सच होता दिखा रहा है, लेकिन अफ़सोस होगा की मेरी बुक लॉन्च पर एक इंसान नहीं होगा, मेरे पिता, यही तो देखना चाहते थे, पापा, अपने बेटे को सफल, खुश और ढेर सारा खुश....शुक्रिया हसन, मेरे लिए मुट्ठीभर ख़ुशी का इंतजाम करने के लिए, तब जब वाकई में मुझे इनकी जरुरत थी, वैसे किताब का नाम होगा जर्नी टू काबुल, या १०० डेस इन काबुल, वैसे दर भी है की ''माँ'' और ''बिट्टू'' कैसे रहेंगे मेरे बिना लेकिन, सबकुछ होगा ठीक, यही तो उम्मीद है, फिलहाल मुझे हसन की काफी टेबल बुक की लौन्चिंग में शामिल होने काबुल जाना है, उसे इंडिया में बेहतर तरीके से लॉन्च कराना है, बाकि बेहतर ही होगा, क्यूंकि इससे बुरा और क्या हो सकता है मेरे साथ...जो हो चुका है मेरे साथ....कभी कभी खुद से ये सवाल भी पूछता हूँ की इतनी तकलीफें डिसर्व नहीं करता यार फिर भी सारी मेरे हिस्से क्यूँ आती हैं लेकिन कोई नहीं...फिलहाल जिन्दा रहने के लिए एक सपना है उसे जी लूँ, और हाँ उपरवाले कोई ''प्यार करनेवाला'' भेज यार, बहुत जरुरत है...

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फुहार

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प्यार करता हूँ सबसे, आपकी कोई भी मदद बिना नफा नुक्सान सोचे कर दूंगा, अपने गुस्से से बहुत डर लगता है, हमेशा कोशिश रहती है की बस ''गुस्सा'' न आये मुझे, लोग मुझे बहुत अच्छे दोस्त, शरीफ इंसान और एक इमानदार दुश्मन के तौर पर याद रखते हैं, एक बार दुश्मनी कीजिये, देखिये कितनी इमानदारी से ये काम भी करता हूँ,