मेहँदी हसन साहब आप भी छोडके चले गए, जबकि हम इंडिया में आपके इलाज का इंतजाम कर रहे थे, अभी पिछले साल की ही बात है, मैं और संजय अभिज्ञान बात कर रहे थे की आपका इंडिया में इलाज कैसे कराया जाए, अपनी जिन्दगी आपको देने पर भी कम लगती, कितना दिया है आपने मुझे, नहीं मालूम होगा न, हैदराबाद में कितना सुनता था, जो भी दुश्मन हो जाता था उससे यही तो कहता था की.....रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ, कितना गुनगुनाया करता था ऑफिस के कारीडोर में, हर कोई यही सोचता की कौन बेवक़ूफ़ ये गाता रहता है, आपको क्या पता, की जिससे भी रंजिश रही, सिर्फ ये लाइन सुनके उससे मिलने का मन करता था, अपने हर उस दोस्त को जो आज दुश्मन बन बैठा है सीने से लगाने का मन करता था, आपको कैसे बताता, मेहँदी हसन साहब की आप क्या थे, हम, राजीव दादा, विज्जू, सभी तो घंटों आपको सुनते थे, घंटो, यकीन जानिए आपकी ये गजल सुनकर हर दुश्मन को माफ़ करने का मन करता था, इन लाइन की बड़ी जरुरत है हसन साहब, सुनूंगा लेकिन आपके बगैर, सब तो खिलाफ हो गए हैं, सब, वो भी, जिसने ढेर सारी तकलीफें झेलकर मुझे ख़ुशी दी थी, सब खिलाफ हो गए हैं, आप रहते, नहीं माफ़ करूँगा कभी नहीं, आप भी धोखेबाज निकले दूसरों की तरह, अच्छा नहीं किया, माफ़ नहीं कर सकता....कुछ दिन और रुक जाते, हर किसी की तरह आपने भी अपने मन की कर ली, सब अपने मन की ही तो करते हैं मेरी कोई सुनता है भला, जगजीत सर चले गए, कितनी इज्जत करता था, बिना बताये ही चले गए, ठीक नहीं किया, कैसे भूलूंगा आपकी ये लाइन बताइए, बहुत याद आती हैं, अब तो और भी याद आएगी, जब भी कोई अजीज दोस्त दुश्मन बन बैठेगा, अरे बन ही गया है, पर आपकी कमी खलेगी, शायद यही त्रासदी है मेरे साथ, बहुत प्यार करता हूँ, बिना जाने, समझे लोगों को, तभी तो बिना मेरी फिक्र किये सब मुझे छोडके चले जाते हैं, सब, बहुत तकलीफ है, क्या करूँ....किससे कहूँ, जिंदगीभर का दर्द दे दिया आपने...जिंदगीभर का....बस इतना जरुर याद रहेगा...
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से किसी और से मिलने के लिए आ
किस किसको बताएँगे जुदाई का सबब हम .......काश की वो सरे दुश्मन जो कभी दोस्त थे समझ पाते की कितनी शिद्दत से उन सबको मिस करता हूँ...और हसन साहब आपको भी....बस कभी कह नहीं पाया..कभी नहीं...और आप यूँही चले गए..बिना मेरी बात सुने....कभी माफ़ नहीं करूँगा...कभी नहीं....उम्मीद करता हूँ जल्द मुलाकात होगी...