बचपन से ही यारबाजी में महारत हासिल कर रखी है या यूँ कहें की बिना यारबाजी के चैन नहीं मिलता, आखिरी तमन्ना भी यही है की दोस्तों के बीच ही अंतिम सांस टूटे, अरसे से दिल्ली के चूतियापों से ऊब हो गयी थी, तरीका भी कुछ सूझ नहीं रहा था, लेकिन हर सुबह शानदार नहीं होती, देर रात घर लौटने और अमूमन लोगों के जागने के समय सोने के कारण अपनी सुबह कोई दोपहर एक बजे के करीब होती है, दुनिया भले इसे दोपहर कहती हो पर ''जब जागो तभी सवेरा'' तोः अपनी सुबह इतने ही वक़्त होती है, अभी ठीक से आँख खुल भी न पायी की दिन की शुरुआत बड़े भाई समान ''आदर्श दादा'' के फ़ोन से हुयी, इधर बात ख़त्म हुयी उधर निखिल और अजित सिंह का आना हुआ, जब दिमाग की दही हो जाए और इतने बड़े शहर में बोअरियत होने लगे तोः दोस्तों का मिलना किसी कीमती वस्तुके मिलने से भी कहीं ज्यादा सुखद अनुभूति का एहसास कराती है, लगा की वक़्त को समेट लिया जाए, पर न मेरे हाथ में वक़्त आने से रहा न वक़्त का गुजरना, एक बार फिर दोस्तों के करीब होने का मतलब सबसे ज्यादा पता चला और ये भी की ''दोस्त जिन्दा मुलाकात बाकी'' अगर आप भी जिंदगी से ऊब गए हों तोः दोस्तों से मिलें, अच्छा और तरोताजा महसूस करेंगे, और अचानक दोस्तों से मिलें उन्हें खोजें और उनके साथ कुछ वक़्त बिताएं ......उर्जा से लबालब होने के लिए इससे सस्ता नुस्खा किसी हकीम के पास भी शायद ही होः,
वैसे कई दोस्तों को शिकायत है की उन्हें वक़्त नहीं दे पाता ''काकू'' भी यही कहता है लेकिन मिलने के लिए मिला जाए इसलिए बहुतों से नहीं मिलता , काश की '' काकू'' समेट बहुत से दोस्त इस मजबूरी को समझ पाते, लेकिन अब सोचा है की हर हफ्ते किसी करीबी दोस्त से जरुर मिलूँगा, लिस्ट बहुत लम्बी है और वक़्त बहुत कम है इसलिए मैं भी अभी से जुट जाता हूँ दोस्तों से मिलने की योजना बनाने में और आप भी बना लीजिये अपनी योजना....
इस बीच बहुत याद आती है कभी दिल के बेहद करीब रहे आशुतोष नारायण सिंह ( मौजूदा समय में आई बी एन -७ में किसी महत्वपूर्ण पद पर) , प्रमिला दीक्षित ( आजतक की बेहद उर्जावान रिपोर्टर ), वीरेंदर श्रीवास्तव ( स्टार टीवी में इंजिनियर ), दीपांकर नंदी ( आजतक) और तनसीम हैदर (आजतक) के साथ विनय शौरी ( क्राइम रिपोर्टर दैनिक जागरण, पटियाला) की.... इन सबने यारबाजी की मिसाल कायम की थी कभी अगर दोस्ती का इतिहास लिखा जाता तोः इन सबका नाम मैं जरुर उस किताब में लिखवाने की हर मुमकिन कोशिश करता, किसी के लिए अपना इम्तिहान छोड़ देना( आशुतोष) , एक दोस्त के आयोजन को सफल बनाने के लिए तपते बुखार मेंजी जान लगाकर आयोजन को सफल बनाना( प्रमिला) , गर्मियों में बिजली गुल हो जाने पर कमरे में बंद होकर नंगे होकर नाचना( वीरेंदर), बेहद गुरबत के दिनों में भी जूनियरों को छोटे भाइयों की तरह ट्रीट करना( दीपंकर दादा) , ई टी वी में मेरे हर दुःख दर्द को अपने सर लेना( तनसीम भाई) और एक अजनबी शहर में किसी कमी का महसूस न होने देना(शौरी पाजी) आज भी ठीक वैसे याद है , कुछ खफा हो गए कुछ खो गए कुछ से मिलने का वक़्त नहीं मिलता लेकिन आज भी एक दिन तोः क्या जिंदगी उन्ही दोस्तों के नाम करने का मन करता है, हर बार बार बार .....अगर किसी को आशुतोष, प्रमिला और दीपंकर दादा का नंबर मिले तोः भेजनेकी तकलीफ करें मेरी बहुत शुभकामनायें आपको मिलेंगी, बाकी ''अजनबी शहर है दोस्त मिलाते रहिये, दिल मिले तभी हाथ मिलाते रहिये ''...सभी दोस्तों की बेहतरी और शानदार जिंदगी की दुआ के साथ
''हृदयेंद्र ''
Sunday, February 22, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Blog Archive
फुहार
- hridayendra
- प्यार करता हूँ सबसे, आपकी कोई भी मदद बिना नफा नुक्सान सोचे कर दूंगा, अपने गुस्से से बहुत डर लगता है, हमेशा कोशिश रहती है की बस ''गुस्सा'' न आये मुझे, लोग मुझे बहुत अच्छे दोस्त, शरीफ इंसान और एक इमानदार दुश्मन के तौर पर याद रखते हैं, एक बार दुश्मनी कीजिये, देखिये कितनी इमानदारी से ये काम भी करता हूँ,
No comments:
Post a Comment